महाराष्ट्र: मंदिरों की धरोहर और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक
महाराष्ट्र: भारत में सबसे अधिक मंदिर महाराष्ट्र में हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा, लेकिन यही सच्चाई है। महाराष्ट्र में 77 हजार 283 मंदिर हैं। यह भी सत्य है कि जहां सबसे अधिक मंदिर हैं, वहां सबसे ज्यादा विदेशी आक्रमण हुए हैं।
महाराष्ट्र के मंदिरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रिदेव पूजा होती है। वेरुल-अजंता की गुफाओं के मंदिर, त्र्यंबकेश्वर, भीमाशंकर, घृष्णेश्वर और परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग महादेव के प्रसिद्ध मंदिर हैं। इसके अलावा पंढरपुर के विठोबा, कोल्हापुर का ज्योतिबा मंदिर, कोल्हापुर की अंबाबाई, मुंबई की महालक्ष्मी और सिद्धिविनायक गणपति भी प्रमुख मंदिरों में शामिल हैं।
मुस्लिम आक्रमणकारियों ने महाराष्ट्र के प्राचीन मंदिरों को निशाना बनाया था। लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज के काल में मंदिरों को फिर से गौरव प्राप्त हुआ। उनके समय में मुस्लिम आक्रमणों के कारण ध्वस्त हुए मंदिरों का पुनर्निर्माण किया गया और इन्हें सुरक्षा भी मिली।
महाराष्ट्र के मंदिर स्थापत्यकला का उत्कृष्ट नमूना हैं। काले और भूरे पत्थरों से निर्मित ये प्राचीन मंदिर सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं। इस मजबूत पत्थर के कारण महाराष्ट्र के मंदिरों में शिल्पकला और कलाकृतियों की कमी नजर आती है। लेकिन, बड़े-बड़े पहाड़ों को काटकर गुफाओं के भीतर मंदिर बनाने की अनूठी परंपरा वेरुल का कैलास मंदिर है। नागर, द्रविड़ और वेसारा ये तीन प्रमुख मंदिर निर्माण की शैलियाँ हैं। उत्तर भारत के मंदिर नागर शैली के हैं, जबकि द्रविड़ शैली के मंदिर दक्षिण भारत में पाए जाते हैं। इन दोनों का मिश्रण वेसारा शैली पश्चिम और भारत के अन्य हिस्सों में देखने को मिलता है।
संक्षेप में कहा जाए तो भारतीय संस्कृति में मंदिर समाज को जोड़ने का काम करते हैं। राष्ट्र का संबंध संस्कृति से होता है, और संस्कृति में कला का महत्व होता है। हर युग की पहचान उसकी स्थापत्यकला से होती है। इस प्रकार, मंदिर एक प्रकार की टाइम मशीन हैं, जिसके माध्यम से इतिहास को समझा जा सकता है। इसलिए मंदिरों को धर्म की सीमाओं से बाहर निकालकर सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित करना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी संस्कृति और सामाजिक विचारधारा से परिचित हो सकें।