Mira Bhayandar Meat Ban : रविवार को महावीर जयंती के अवसर पर चिकन और मटन बेचने वाली दुकानों को बंद करने के मीरा भायंदर मनपा के फैसले पर नागरिकों ने अपना गुस्सा व्यक्त किया. मनपा ने नागरिकों को अंधेरे में रखते हुए यह प्रतिबंध लागू किया और रविवार को बाजार गए नागरिक बंद दुकानें देखकर चौंक गए।
महावीर जयंती के मौके पर मनपा ने रविवार को मीरा भयंदर शहर में मांस की दुकानें बंद रखने का फैसला किया है. हालांकि, नागरिकों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई. इसकी जानकारी केवल मांस विक्रेताओं को दी गई, जिससे शहरवासी अंधेरे में रह गए। इससे संडे मार्केट में चिकन-मटन खरीदने पहुंचे लोगों को निराशा हाथ लगी। रविवार मांसाहार के लिए उपयुक्त दिन है। लेकिन दुकानें बंद देख नागरिकों ने आक्रोश व्यक्त किया.
हमें सप्ताह में एक दिन की छुट्टी मिलती है। इसलिए इस दिन हमारे घर में मांसाहारी भोजन बनाया जाता है. एक स्थानीय नागरिक शिवाजी भोसले ने कहा कि आज जब वह मटन खरीदने निकले तो उन्हें मटन कहीं नहीं मिला. एक और स्थानीय निवासी सचिन जानवळकर ने कहा कि मीट बैन जैसा ये फैसला इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि पिछले कुछ सालों में एक खास समुदाय के लोग यहां आए हैं लेकिन ये कोई फैसला नहीं बल्कि हमारी संस्कृति को धीरे-धीरे खत्म करने की साजिश है.
सिर्फ इसलिए कि यह एक विशेष समुदाय का त्योहार है, पूरे शहर में मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं है। क्या महानगरपालिका हर त्यौहार के लिए अलग-अलग निर्णय लेगी? एक और स्थानीय निवासी ने बताया कि भयंदर में मांस की दुकानें तो बंद हैं, लेकिन मीरा रोड के मुस्लिम बहुल इलाके में दुकानें अभी भी खुली हैं?
शहर में जैन समुदाय की बढ़ती संख्या के कारण मांस की बिक्री को लेकर पहले भी कई बार झगड़े हो चुके हैं. पर्युषण काल में हमेशा विवाद की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। इसके चलते मनपा दफ़्तर में धरना देकर मांस खाने का इतिहास है। हालांकि प्रशासन पर आरोप है कि वह हमेशा एक खास समाज के दबाव में आकर मांस पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लेता है.
मनपा के अधिकारियों का कबूलनामा-नागरिकों को अंधेरे में रखा
राज्य सरकार के 2009 के सरकारी फैसले के मुताबिक चिकन और मटन बेचने वाली दुकानों को बंद करने का फैसला लिया गया. हालांकि, मीरा भायंदर महानगरपालिका के पशुपालन अधिकारी विक्रम निराटले ने स्वीकार किया है कि प्रतिबंध के फैसले के बारे में नागरिकों को जानकारी नहीं दी गई थी. पशुपालन विभाग ने इस फैसले की जानकारी जनसंपर्क पदाधिकारी व अन्य किसी विभाग को नहीं दी थी. उन्होंने कहा कि इसके कारण नागरिकों को मांस प्रतिबंध के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली और प्रशासन भी भ्रमित दिखा.
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