रक्षाबंधन पर मुंबई‑अहमदाबाद हाईवे पर मरम्मत और ट्रैफिक डायवर्जन ने बहनों की राखी यात्रा को जाम में बदल दिया, त्योहार की खुशी गुम, सवालों का हिमस्खलन जारी।
मुंबई, 9 अगस्त: रक्षाबंधन, यह केवल त्योहार नहीं, बल्कि भाई-बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक है। सालभर बहनें इस दिन का बेसब्री से इंतजार करती हैं, जब वे राखी बांधकर भाई की रक्षा की कामना करती हैं। लेकिन इस बार मुंबई‑अहमदाबाद (NH‑48) पर महीनों से चल रहा भीषण ट्रैफिक जाम इस उमंग पर ग्रहण बनकर टूट पड़ा। त्योहारी संध्या पर, जब बहनें राखी और मिठाई की थाल लेकर निकल पड़ीं, तब किसी ने नहीं सोचा था कि उनकी भक्तिभावना घंटों के फंसे सफर में बदल जाएगी। कई बहनें तो एक दिन पहले निकलने की सोच खूबी से सोच रही थीं, फिर भी रक्षाबंधन के दिन जो लोग निकल पड़ीं, वे सुबह से शाम तक फंसी रहीं ।
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प्रशासनिक लापरवाही और संवेदनहीन डायवर्जन योजना
6 अगस्त को मरम्मत कार्य के लिए ट्रैफिक डायवर्जन की अधिसूचना जारी की गई, जबकि 8 से 10 अगस्त तक लगातार छुट्टियां थीं और 9 अगस्त को रक्षाबंधन था। लेकिन प्रशासन ने त्योहार की संवेदनशीलता को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। नतीजा यह हुआ कि डायवर्जन ने स्थिति और बिगाड़ दी, न सिर्फ एनएच‑48, बल्कि उससे जुड़ी सभी आंतरिक सड़कों, जैसे विरार, भिवंडी, ठाणे, मीरा रोड, नायगांव आदि पर जाम की विकराल समस्या खड़ी हो गई।
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आंकड़ों की जुबानी
मुंबई‑अहमदाबाद नेशनल हाईवे से प्रतिदिन लाखों वाहन गुजरते हैं। 600 करोड़ रुपये की लागत वाले वाइट‑टॉपिंग सड़क निर्माण का अब तक विवाद बना हुआ है—गुणवत्ता और समय पर न पूरा होने पर गंभीर सवाल खड़े हैं। ट्रैफिक जाम में फंसे लोगों में सबसे अधिक मरीज, बुजुर्ग और महिलाएं प्रभावित हुई हैं। वैकल्पिक साधनों जैसे लोकल ट्रेनें और मेल ट्रेनें भी भीड़ के कारण ओवरलोड हो गई हैं।
बहनों की आवाज़ साफ़ थी, “त्योहार की खुशी, राखी की मिठास जाम के आगे फीकी हो गई। अगर थोड़ी संवेदनशीलता होती, तो यह मरम्मत कार्य रक्षाबंधन के आसपास रोका जा सकता था।” ऐसा कई बहनों ने सोशल मीडिया के माध्यम से सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और NHAI से प्रश्न पूछते हुए दर्ज कराया, “600 करोड़ का हिसाब कौन देगा? जाम की समस्या का समाधान कब?”
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निस्संतोष और सवालों की बारिश
सड़कों पर सुरक्षा का समझौता, ट्रैफिक प्रबंधन में नाकामी और कोरव सड़कें, इन सबने मिलकर जाम और पीड़ा बढ़ा दी। न तो पर्याप्त ट्रैफिक पुलिस तैनात हुई, न ही इमरजेंसी ड्राइव की व्यवस्था। कुछ एंबुलेंस में ही रास्ते में मरीजों की जान चली गई, तो कई लोग कार्यालय, स्कूल और इलाज में देर से पहुंचे।
अब सवाल यही है, जवाबदेही किसकी होगी? जनता, खासकर ‘लाडली बहनें’ पूछ रही हैं, क्या बीजेपी सरकार इसका जवाब देगी? क्या नितिन गडकरी या NHAI अधिकारी जनता की पीड़ा सुनेंगे? 600 करोड़ के प्रोजेक्ट पर जिम्मेदार ठेकेदारों पर कार्रवाई कब होगी? सवाल बहुत हैं, जवाब अभी तक सन्नाटे में खोए हुए हैं।
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