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Electoral Bond : सुप्रीम कोर्ट ने ‘इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम’ को बताया असंवैधानिक, करार रद्द

 सुप्रीम कोर्ट ने आज इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम (‘Electoral Bond Scheme) मामले पर अपना फैसला सुनाया और इस योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने पहले राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए वैकल्पिक प्रणालियों की खोज करने का प्रस्ताव दिया था।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2018 में शुरू की गई थी, जहां इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग ऐसे उपकरणों के रूप में किया जाता था,जिन्हें व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा बैंकों से किसी राजनीतिक दल को देने के लिए ख़रीदा जा सकता था,जो बदले में धन और दान के रूप में इसे भुना सकता था।

राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था।

योजना के प्रावधानों के अनुसार, केवल वे राजनीतिक दल चुनावी बांड प्राप्त करने के लिए पात्र थे जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या राज्य विधान सभा चुनावों में डाले गए वोटों का कम से कम 1 प्रतिशत वोट मिले हों।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें:

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने गुरुवार को सर्वसम्मति से फैसला सुनाया, जिसमें चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार दिया गया।सुप्रीम कोर्ट ने आज दो फैसले सुनाए गए, दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचे लेकिन टिप्पणियाँ थोड़ी भिन्न थीं।

(1) सीजेआई ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है।

(2) सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बांड जारी करने से रोकने के लिए कहा, साथ ही बैंक से भारत के चुनाव आयोग को सभी जानकारी का खुलासा करने के लिए कहा।

(3) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बांड के माध्यम से कॉर्पोरेट योगदानकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य यानि quid pro quo से है।

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