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2006 मुंबई बम ब्लास्ट मामला: हाईकोर्ट के फैसले पर सियासी घमासान तेज, अब सुप्रीम कोर्ट जाएगी महाराष्ट्र सरकार

2006 मुंबई बम ब्लास्ट मामला: हाईकोर्ट के फैसले पर सियासी घमासान तेज, अब सुप्रीम कोर्ट जाएगी महाराष्ट्र सरकार, अबू आजमी बोले – “19 साल की बर्बादी के बाद मिला इंसाफ, क्या यही न्याय है?”

📍 मुंबई/नई दिल्ली | विशेष रिपोर्ट – मेट्रो सिटी समाचार

2006 के मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट केस में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा 12 आरोपियों को बरी करने के फैसले ने राजनीतिक हलकों में भूचाल ला दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने इस फैसले को “चौंकाने वाला” बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर लिया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सोमवार को स्पष्ट रूप से कहा, “यह फैसला बेहद चौंकाने वाला है और हम इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।”

मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने इस मामले पर 25 जुलाई को सुनवाई के लिए सहमति दी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से आग्रह किया कि “यह मामला अति गंभीर है और तुरंत सुनवाई की जरूरत है।”

🔴 हाईकोर्ट ने क्यों किया बरी?

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपनी 671 पन्नों की ऐतिहासिक टिप्पणी में कहा कि:

  • अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि बम धमाकों में किस प्रकार का विस्फोटक इस्तेमाल हुआ।

  • आरोपियों के कबूलनामे यातना के आरोपों के कारण मान्य नहीं माने गए।

  • गवाहों की विश्वसनीयता और पहचान प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं।

2006 में हुए इन सिलसिलेवार धमाकों में 189 लोगों की जान गई थी और 800 से अधिक लोग घायल हुए थे। सभी 12 आरोपी पिछले 19 वर्षों से जेल में बंद थे और उन पर मकोका जैसे सख्त कानून के तहत मुकदमा चला।

🗣 सियासी प्रतिक्रिया

🧑‍⚖️ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (गृह मंत्री भी):

“हम इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। यह फैसला बेहद चौंकाने वाला है और न्याय की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाता है।”

🗣 अबू आजमी (महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी अध्यक्ष और विधायक):

“मैं पहले दिन से कहता आ रहा हूँ कि 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट में बेकसूर मुसलमानों को फंसाया गया था। हाईकोर्ट का यह फैसला न्याय जरूर है, लेकिन बहुत देर से मिला है।

यह बताता है कि हमारी पुलिस और जांच एजेंसियां कितनी पक्षपाती हैं। जब भी धमाका होता है, तो बेकसूर मुसलमानों को ही टारगेट किया जाता है।

अब मेरी सरकार से चार मांगें हैं:

  1. बरी हुए सभी को घर, नौकरी और आर्थिक मुआवज़ा दिया जाए।

  2. जिन एजेंसियों ने उन्हें झूठे केस में फंसाया, वे सार्वजनिक माफ़ी मांगें।

  3. जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो।

  4. एक नई एसआईटी गठित कर असली दोषियों को पकड़ा जाए।

“मुसलमानों को बार-बार बलि का बकरा बनाना बंद होना चाहिए। अगर संविधान पर विश्वास है, तो न्याय देना सिर्फ अदालत का नहीं, सरकार का भी कर्तव्य है।”

🧕 प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना UBT सांसद):

“यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दोषियों को बरी कर दिया गया। यह राज्य सरकार की लापरवाही का नतीजा है। उन्हें मजबूती से केस पेश करना चाहिए था।”

🧓 किरीट सोमैया (बीजेपी नेता):

“19 सालों में पीड़ित परिवार बिखर गए, और अब कहा जा रहा है कि कुछ हुआ ही नहीं? यह न्याय व्यवस्था पर बड़ा झटका है। सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती देकर सच्चाई सामने लानी होगी।”


🧾 निष्कर्ष:

बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला न्यायिक दृष्टि से ऐतिहासिक जरूर है, लेकिन इसकी राजनीतिक और सामाजिक गूंज लंबे समय तक महसूस की जाएगी। जहां एक ओर इसे न्याय की जीत बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसे जांच एजेंसियों और राज्य व्यवस्था की विफलता के तौर पर देखा जा रहा है। अब निगाहें 25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि क्या इस केस में न्यायिक पुनर्विचार की गुंजाइश है या 19 सालों का लंबा इंतजार अब हमेशा के लिए खत्म हो चुका है।

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