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Lok Sabha 2024 Low Voter Turnout : लोकसभा चुनाव में हो रहे कम मतदान के आधार पर परिणाम की भविष्यवाणी करना नहीं है आसान!

Lok Sabha 2024 Low Voter Turnout : लोकसभा चुनाव 7 फेज में हो रहे हैं। पहले पहले फेज में 66.14% और दूसरे फेज में 66.71% मतदान हुआ था। अब 13 मई, 20 मई, 25 मई और 01 जून को मतदान होगा। चुनाव परिणाम 4 जून को आएंगे।

2024 लोकसभा चुनाव में मतदान की गिरावट ने सभी राजनैतिक पार्टियों को हैरानी में डाल रखा है. 2019 के मुक़ाबले 2024 लोकसभा में हो रहे कम मतदान का एक मतलब ये भी निकाला जा सकता है कि मतदाता को कोई उत्साह नहीं है, क्योंकि उसको ये लगता है कि उसके वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता. एक वजह ये भी हो सकती है कि वो परिणाम को लेकर पहले से ही आश्वस्त है.

दो चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है. मतदान कम हुआ इसने सबकी चिंता बढ़ाई हुई है. बूथ प्रबंधन का कौशल जिन राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के पास है उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाना था,जो जहां से जीते हैं उन्हें वहां से अपनी जीत के आंकड़े को बढ़ाना है, ये लक्ष्य भी दिया गया था, फिर क्या हुआ?

क्या हुआ, एक ऐसी धुँधली क़िताब है, जिसको सब अपने-अपने चश्मे से पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट्स की बाढ़ आई है, जहां बताया जा रहा है कि कम मतदान का मतलब सत्ता को चुनौती है. कोई ऐसे आंकड़े लेकर आ रहा है कि उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में फलां सीट पर बेहद कम मतदान हुआ था, जिसमें सत्ताधारी की जीत हुई थी, जो सत्ता में हैं वो कह रहे हैं कि विपक्ष का मनोबल इतना टूटा हुआ है कि वो अपने चाहने वालों को बूथ पर नहीं ला पाया.

भाजपा तो एक तर्क ये भी दे रही है कि जातियों में बंटी भारतीय राजनीति में बूथ पर वो लोग आ रहे हैं, जो सरकार को दोहराना चाहते हैं क्योंकि उनका भला लाभार्थी योजनाओं से ही होगा। विपक्ष कह रहा है कि ऐसा नहीं है। कम मतदान में किसका भला है इस पहेली को समझने के लिए जरूरी है कि किस तरह से मतदाता पिछले 10 वर्षों में बदला है.

पिछले एक दशक में मतदाता की तीन पहचान बनी हैं, एक जिस जाति समूह या वर्ग से वो हैं. एक पहचान उसकी सामाजिक आर्थिक पहचान है. और एक पहचान लाभार्थी की है. किसी भी मतदान के पहले किस पहचान ने बड़ा रोल अदा किया है, और किस पहचान का संकट मतदाता के सामने हो सकता है, उसके हिसाब से ही वो वोट डाल सकता है. तीन पहचान में से कौन सी पहचान को राजनीतिक दल भावात्मक बनवा पाए हैं, वोट उसके हिसाब से ही डाले जा सकते हैं.

कम मतदान के रहस्य को ऐसे भी समझा जा सकता है कि मतदाता को कोई उत्साह नहीं है, क्योंकि उसको ये लगता है कि उसके वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता. एक वजह ये भी हो सकती है कि वो परिणाम को लेकर पहले से ही आश्वस्त है, लेकिन इन दोनों वजहों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की भूमिका है. ये मतदाता की पहचान से जुड़े मामले नहीं हैं.

विपक्ष इस बात को हवा दे रहा है कि जब सत्ताधारी दल का कार्यकर्ता जनता को बूथ पर लाने में फेल होता है तो इसका मतलब है कि कुछ गड़बड़ है. कुछ राजनैतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि मामला उतना सपाट नहीं है. एक तो मौसम की मार और दूसरा ये एक ऐसा राजनीतिक मैच है जिसका नतीजा शायद मतदाता, मैच से पहले ही मान लिया है इसलिए ऐसे मैच में कोई उत्साह नहीं होना बहुत सामान्य है.

पिछले दो चुनावों में मतदान औसत लगभग 66/67 फीसदी के आस-पास रहा है. इस वोटिंग में भाजपा कार्यकर्ता ने बड़ा रोल अदा किया था. मतदाताओं को पर्ची भेजने का काम वक्त पर पूरा किया गया. रैली की तैयारी में उसने वक्त दिया. इस बार के चुनाव में कई जगहों पर ऐसी शिकायतें आई हैं कि पर्ची भी सही ढंग से नहीं पहुंची तो क्या कार्यकर्ताओं की वजह से वोटिंग कम हो रही है? बहुतायत लोग मानते है कि भाजपा उन दलों में से है जहाँ फीडबैक के आधार पर हल बहुत जल्दी ढूंढ लिया जाता है.

अगर किसी भी स्तर पर मामला कार्यकर्ताओं की बेरुखी है तो इसको पार्टी अगले कुछ दौरों में दुरुस्त कर सकती है. लेकिन पिछले दस वर्षों में हुई बेतहाशा हॉर्स ट्रेडिंग ने भाजपा कार्यकर्ताओं के मनोबल पर आघात किया है. कम मतदान ने आने वाले चुनावी चरणों के लिए निस्संदेह चुनौती पेश की है. लेकिन चुनाव का बड़ा हिस्सा अभी बाकी है. सारे सियासी दल कोशिश करेंगे कि उनके अपने मतदाता अब बूथ पर पहुंचें.

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सोशल मीडिया पर चल रही तमाम दलीलों के आधार पर ये कहना बेहद मुश्किल है कि थोड़ा कम मतदान किसी की जीत या हार का ठोस पैमाना है.मतदान किन जगहों पर किस बूथ पर कितनी हुई इन आंकड़ों को जाने बिना- मीडिया,राजनैतिक पंडितों एवं सियासी संस्थाओं द्वारा कयासों का अफ़साना लिखा जा रहा है जो थोड़ी जल्दबाजी है.लेक़िन ये तो स्पष्ट है कि “कम मतदान” सदैव सियासी गलियारों में उहापोह की स्थिति का निर्माण तो कर ही देता है! बहरहाल 04 जून का इन्तेज़ार करें क्योंकि सत्तासीन होने की चुनावी समर में “इन्तेज़ार- सबसे बड़ी इबादत है”।

 

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