New Delhi:पहलगाम हमले के बाद उठे सात बड़े सवाल: 28 मौतों का जवाब कौन देगा?
देशभर में गुस्से की लहर, लेकिन हमले के बाद कई अहम सवाल रह गए अनुत्तरित। आतंकी फरार कैसे हुए? सुरक्षा में कहां चूक हुई? जांच के घेरे में कई पहलू।

New Delhi: धरती का स्वर्ग और केस की क्यारी कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर घाटी एक बार फिर बेगुनाहों के लहू से लाल हो गई। ना’पाक आतंकियों ने निहत्थे पर्यटकों को निशाना बनाया। इस बर्बर हमले में 28 सैलानियों की मौत हो गई। हमले के बाद से समूचा देश आक्रोशित है। हर तरफ आतंक के खिलाफ एक उबाल देखने को मिल रहा है। लेकिन रोष और आक्रोश के इस गर्द-ओ-गुबार में कई जायज सवाल दबे जा रहे हैं।
मंगलवार की दोपहर कश्मीर की वादियों के बीच पहलगाम घूमने पहुंचे पर्यटकों और उनके परिवारों के लिए अमंगलकारी हो गई। आतंकियों ने यहां चैन के दो पल बिताने आए पर्यटकों की जान ले ली और परिजनों का सुकूं छीन लिया। इस हमले में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि आतंकियों ने लोगों का धर्म पूछकर गोली मारी। आतंकियों की इस टारगेट किलिंग ने एक बार फिर से वही धर्म-मजहब और हिंदू मुस्लिम की बहस छेड़ दी।
टारगेट किलिंग कश्मीर में नई बात नहीं है। यहां हमेशा से हिंदुओं को निशाना बनाया गया। इसके पीछे के कारण क्या है वह भी हम आपको इस रिपोर्ट में बताएंगे। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी हिंदू-मुस्लिम और धर्म-मजहब की बहस में वह सवाल दबे जा रहे हैं जो सही मायने में जिम्मेदारों से किए जाने चाहिए।
कैसे फरार हो गए आतंकी?
जम्मू कश्मीर के पहलगाम में लाखों की तादाद में पर्यटक पहुंचते हैं। जिस जगह हमला हुआ उस बैसरन वैली में हजारों पर्यटक मौजूद थे। लेकिन वहां पर्याप्त सुरक्षाबल क्यों मौजूद नहीं थे? अगर मौजूद थे तो आतंकी पर्यटकों पर गोलियां बरसाकर फरार कैसे हो गए?
इंटेलिजेंस फेलियर कैसे हुआ?
इसके अलावा सवाल सूबे के लेफ्टिनेंट गवर्नर से भी पूछे जाने चाहिए। क्योंकि जम्मू-कश्मीर की पुलिस और सुरक्षा व्यवस्था केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है। केन्द्र शासित प्रदेश होने के नाते लेफ्टिनेट गवर्नर राज्य में उसके प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं। इतना बड़ा सिक्योरिटी इंटेलिजेंस फेलियर कैसे हो गया?
अतिरिक्त सतर्कत क्यों नहीं?
सवाल केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी पूछा जाना चाहिए क्योंकि कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है। ऐसे में जिस वैसरन वैली में हजारों की संख्या में पर्यटक मौजूद थे वहां पर्याप्त सुरक्षा के इंतजाम क्यों नहीं थे? क्या अतिरिक्त सतर्कता के तौर पर वहां सीआरपीएफ जवानों की तैनाती नहीं की जा सकती थी?
कैसे बैसरन वैली तक पहुंचे दरिंदे?
सवाल देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी पूछा जाना चाहिए! आतंकी सरहद के पार कर के आ गए। पहलगाम की बैसरन वैली तक पहुंच गए। क्या यह सेना पर सवालिया निशान नहीं छोड़ता है? और सेना की तरफ उठने वाली हर उंगली देश के रक्षा मंत्री पर उठती है।
देश सुरक्षित हाथों में है?
सवाल देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी पूछे जाने चाहिए! क्योंकि उन्होंने नोटबंदी और धारा 370 हटाने के फैसले लेते समय कहा था कि इससे आतंक खत्म होगा। लेकिन उसके बाद पुलवामा, रियासी और अब पहलगाम में बड़ा अटैक हुआ है। क्या यह उन दावों पर प्रश्नचिन्ह नहीं है। वो कहते हैं कि देश सुरक्षित हाथों में है, यह कितना सही है?
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पर्यटकों को क्यों निशाना बनाते हैं आतंकी
कश्मीर की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा पर्यटन पर निर्भर है। ऐसी घटनाओं के बदा पर्यटक घाटी में आने से कतराने लगते हैं। इतना ही नहीं, होटल, टैक्सी, गाइड जैसे रोजगार से जुड़े हजारों लोगों की रोजी-रोटी पर असर पड़ता है। जो पाकिस्तान और उसके समर्थित आतंकी संगठनों को पसंद नहीं है। आतंकी नहीं चाहते कि स्थानीय लोग भारत सरकार से जुड़ाव महसूस करें।
टारगेट किलिंग के पीछे का मकसद
आजादी के बाद से ही पाकिस्तान कश्मीर को अशांत करने की साजिशों से बाज नहीं आया है। वह आतंक के जरिए यह चाहता है कि कश्मीर में शांति न रहे। अगर बड़ी संख्या में पर्यटक आएंगे तो इससे दुनिया को यह संदेश जाएगा कि कश्मीर में शांति और सामान्य स्थिति है। घाटी में शांति न होने की स्थिति में पाकिस्तान वैश्विक मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उछालने की कोशिश करता हैं।