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पीएम मोदी वाली नहीं है वसई विरार बीजेपी? अनुशासनहीनता को मूक समर्थन देते जिलाध्यक्ष

चाटुकारों का संरक्षण बनी पार्टी के गले की फांस

वसई : सोशल मीडिया पर किंग बनने के चक्कर में गच्चा खा गया राजदेव,बीजेपी उत्तर भारतीय मोर्चा के ग्रुप को गुमराह करके पत्रकार के खिलाफ बना रहा था हवा, अचानक जिलाध्यक्ष की सर्जिकल स्ट्राइक ने उड़ा दिए होश.

बड़बोलेपन और मिली ईश्वरीय क्षमता से अधिक बोझ उठाने के चक्कर में अब राजदेव की राजनीतिक रीढ़ टूटने की कगार पर पहुंची है। जानकर बताते हैं कि कड़वा ही सही पर इलाज के नाम पर सिर्फ माफी ही एकमात्र उपाय है। सोशल मीडिया पोस्ट पर जड़ी बूटी खाकर रात के १२ बजे पत्रकार से भिड़ने वाले इस नेता ने उद्दंडता की सारी सीमाएं लांघ दीं। उसने ना तो पार्टी का खयाल किया और ना ही पार्टी की गरिमा का।

बूटी के जोश का आलम यह था कि आव देखा ना ताव, लगे हाथ पत्रकार को देख लेने की धमकी भी दे डाली। दो चेहरों वाला इंसान है राजदेव जो अपनी व्यक्तिगत कमजोरी को छिपाने, साहस और हिम्मत जुटाने की जुगत में बीजेपी एवरशाइन नामक हैंडल से रात भर चपर चपर करता रहा। जबकि उसके पास अपने नाम का भी हैंडल है लेकिन उसे व्यक्तिगत लड़ाई, सामूहिक तौर पर दिखानी थी। अकेले के दम पर कमजोरी का एहसास उसे बार बार बीजेपी के हैंडल पर जाने को मजबूर कर रहा था और उसने किया भी वही।

बूटी के एक्स्ट्रा जोश ने आखिर एक्सीडेंट करवा ही दिया। बीजेपी एवरशाइन नामक ट्विटर हैंडल के दम पर राजदेव पत्रकारों को भिखारी घोषित करते हुए खुद को धन्नासेठ बताने लग गया। बड़बोलापन इतना कि खुद उड़ता तीर लपक लिया जो अब गले तक पहुंच चुका है। परिस्थियां ऐसी हैं कि उसे अब दोलत्ती बर्दाश्त करने की आदत डालनी होगी।

जिस मीडिया के दम पर प्रधानमंत्री मोदी के कार्य घर घर तक पहुंचे हैं उन्ही की पार्टी का अदना सा कार्यकर्ता राजदेव, मीडिया वालों को रात भर ५०० के नोटों में तौलता रहा। बीजेपी के हैंडल में गर्मी इतनी कि वो खुद को कौरवों की अक्षौहिणी सेना का स्वामी समझने लग गया।

खैर फिलहाल राजदेव सिंह ने पार्टी के लोगों को उकसाने और महाभारत कराने का शकुनी वाला रोल लगातार करता रहा लेकिन उसकी उसकी चुगली ज्यादा देर नहीं टिक पाई और उसकी पोल खुलते ही पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने सोशल मीडिया पर उसका मुंह सिल तो दिया लेकिन राजदेव द्वारा सोशल मीडिया पर बीजेपी के हैंडल से पत्रकारों के नाम पर अपशब्द कहे जाने के बाद भी अभी तक कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की है जिससे पार्टी के वसई विरार जिला अध्यक्ष पर उंगलियां उठनी शुरू हो गई हैं।

अब सवाल यह उठता है कि क्या यह वही बीजेपी पार्टी है जिसने अनुशासनहीनता पर अपने प्रवक्ता और विधायक कद के नेता तक को सस्पेंड करने में देर नहीं लगाई और इधर वसई विरार में बीजेपी के हैंडल से शहर के पत्रकारों को अपमानजनक शब्द कहे गए, जिस पर जिलाध्यक्ष महेंद्र पाटिल ने कोई कार्रवाई ना करते हुए, एक तरह से मामले में बड़बोले पदाधिकारी का मूक समर्थन ही किया है। इसके पीछे का कारण भी जानना भी उतना ही दिलचस्प होगा, बेशक उस बारे में भी चर्चा होनी ही चाहिए

जिस प्रकार बंदर के हाथ में उस्तरा नहीं दिया जा सकता उसी प्रकार अब बीजेपी महाराष्ट्र के वरिष्ठ पदाधिकारियों को ऐसे अयोग्य कार्यकर्ताओं पर अंकुश लगाना चाहिए जिन्हें सोशल मीडिया और मीडिया का सम्मान करना नहीं आता।

राजदेव सिंह इस का प्रमाण है जिसने अपनी अयोग्यता, अक्षमता के कारण बीजेपी द्वारा अर्जित की गई शक्ति का बेजा इस्तेमाल किया और स्वयं की कमजोरी छिपाने के लिए बीजेपी के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं को गुमराह करते हुए पार्टी को बदनाम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है, ऐसे लोगों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाते हुए योग्य लोगों को स्थान देना चाहिए जिन्हें उसका मूल्य समझ में आता हो।

 

 

 

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