बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण आंदोलन पर सख्त टिप्पणी की। अदालत ने पूछा कि विरोध खत्म होने के बाद भी सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा। सभी पक्षों को हलफनामा दाखिल करने का आदेश।
मुंबई, 3 सितंबर: मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान हुए व्यापक विरोध-प्रदर्शन के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को सख्त टिप्पणियाँ कीं। अदालत ने स्पष्ट कहा कि भले ही आंदोलन अब समाप्त हो चुका है, लेकिन इस दौरान सार्वजनिक संपत्ति को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कौन करेगा, यह सबसे बड़ा सवाल है।
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कोर्ट का स्पष्ट सवाल
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि आंदोलन के चलते न केवल सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचा बल्कि कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए। अदालत ने तीखे लहजे में पूछा,“जनता और प्रशासन को हुए नुकसान का हिसाब कौन देगा?”
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जरांगे पक्ष की दलील
आंदोलनकारी मनोज जरांगे का पक्ष रखने वाले वकील ने दलील दी कि यदि राज्य सरकार ने यह मुद्दा पाँच साल पहले ही सुलझा लिया होता, तो आज यह नौबत नहीं आती। उन्होंने कहा कि आंदोलन समाप्त हो चुका है और लोग गाँव लौट गए हैं। वकील ने यह भी माना कि आंदोलन के दौरान कुछ एफआईआर दर्ज हुईं, लेकिन राज्य के हस्तक्षेप से मामला काफी हद तक सुलझा।
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अदालत की कार्यवाही
न्यायालय ने कहा कि सभी पक्षों को हलफनामा दाखिल करना होगा, तभी जिम्मेदारी तय होगी। अदालत ने टिप्पणी की कि बिना शपथपत्र यह निर्धारित करना असंभव है कि वास्तविक नुकसान का जिम्मेदार कौन है और इसकी भरपाई कैसे की जाएगी ?
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सरकार की भूमिका पर सवाल
जरांगे के वकील ने यह भी कहा कि यह जिम्मेदारी सरकार की थी कि वह समय रहते समाधान निकालती। उन्होंने अदालत में कहा,“अगर सरकार ने पाँच साल पहले निर्णय लिया होता, तो इतने बड़े पैमाने पर आंदोलन, हिंसा और नुकसान नहीं होता।”
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कोर्ट की चिंता: जनहित सर्वोपरि
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यह मामला केवल आरक्षण या आंदोलन तक सीमित नहीं है। यह जनहित और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा का प्रश्न है। अदालत ने कहा कि जब सड़कों पर गाड़ियाँ जलती हैं, सरकारी इमारतों को नुकसान पहुँचता है, तो अंततः यह जनता के टैक्स से भरी सरकारी निधि पर बोझ बनता है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई को चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया है। इस दौरान सभी पक्षों को हलफनामा दाखिल करना होगा। इसके बाद ही अदालत तय करेगी कि नुकसान की भरपाई किससे कराई जाए और दोषियों की जवाबदेही किस तरह तय होगी।
माराठा आरक्षण आंदोलन ने एक बार फिर यह गंभीर प्रश्न खड़ा किया है कि बड़े प्रदर्शनों के दौरान हुए नुकसान की जिम्मेदारी किसकी होगी। बॉम्बे हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणियों से स्पष्ट है कि भविष्य में जवाबदेही केवल आंदोलनकारियों पर ही नहीं, बल्कि प्रशासन पर भी तय होगी।
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