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Covidshield : कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी ने कोर्ट में किया कबूल, वैक्सीन को लेने वालों को हो सकता है हार्ट अटैक या ब्रेन स्ट्रोक!

Covidshield
  • एस्ट्राजेनेका वैक्सीन से जम जाता है खून का थक्का, कंपनी का ब्रिटेन कोर्ट में कबूलनामा; Covidshield Vaccine से गंभीर साइड इफेक्ट की हुई पुष्टि
  • AstraZeneca Vaccines Side Effects: एस्ट्राजेनेका वैक्सीन से होती है ब्लड क्लॉटिंग, ब्रिटिश कोर्ट में कंपनी का कबूलनामा

ब्रिटेन के हाईकोर्ट में पेश दस्तावेजों में एस्ट्राजेनेका ने साइड इफेक्ट्स की बात कबूल की है। हालांकि, वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट्स को स्वीकार करने के बाद भी कंपनी इससे होने वाली बीमारियों या बुरे प्रभावों के दावों का विरोध कर रही है। यह खबर भारत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है।

कोरोना महामारी के दौरान लोगों को बीमार होने से बचाने के लिए ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगाई गई थी। इस वैक्सीन का उत्पादन भारत में अदार पूनावाला के सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा किया गया था। इसके बाद भारत समेत दुनियाभर के करोड़ों लोगों ने यह वैक्सीन लगवाई थी। महामारी के लगभग 4 साल बाद एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटेन के कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों में पहली बार माना है कि कोविड-19 वैक्सीन में Blood Clotting से लेकर TTS जैसे साइड इफेक्ट्स देखने को मिल सकते हैं।

एस्ट्राजेनेका ने स्वीकार किया कि उसकी कोरोना वैक्सीन, जो कोविशील्ड (Covidshield) और वैक्सजेवरिया नाम के तहत पूरी दुनिया में बेची गई थी। लोगों में खून के थक्के समेत कई कई साइड इफैक्टस हो सकते हैं। आसान शब्दों में कहें तो इससे दिल का दौरा, ब्रेन स्ट्रोक और प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं। हालांकि, वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट्स को स्वीकार करने के बाद भी कंपनी इससे होने वाली बीमारियों या बुरे प्रभावों के दावों का विरोध कर रही है।

दरअसल जैमी स्कॉट ने एस्ट्राजेनेका के खिलाफ मुकदमा दायर किया था. उन्होंने अप्रैल 2021 में कोरोना वैक्सीन की डोज ली थी, जिसके बाद वह स्थाई मस्तिष्क क्षति से जूझ रहे हैं. जैमी स्कॉट समेत कई अन्य मरीजों से TTS के साथ थ्रोम्बोसिस नाम की दुलर्भ संकेत दिखे थे. इन सभी कंपनी के खिलाफ केस दर्ज कराते हुए मुआवजे की मांग की थी.

इस साल फरवरी में यूके की एक अदालत में पेश एक कानूनी दस्तावेज़ में, कैम्ब्रिज स्थित कंपनी ने थ्रोम्बोसिस के साथ थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) का जिक्र करते हुए स्वीकार किया कि उसका टीका ‘बहुत ही दुर्लभ मामलों में, टीटीएस का कारण बन सकता है.’ इस स्थिति में कम प्लेटलेट काउंट घटने और खून के थक्के जमने जैसी समस्याएं आ सकती हैं.

बता दें कि कोरोना महामारी के दौरान इस वायरस की रोकथाम के लिए दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ऑक्सफोर्ड के साथ मिलकर कोविड वैक्सीन बनाई थी. वहीं भारत में वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ने एस्ट्राजेनेका के साथ समझौता करके कोविशील्ड (Covidshield) वैक्सीन बनाया था. इसके बाद देश में आधे से अधिक लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन ही लगाई गई थी.

एस्ट्राजेनेका ने कोर्ट में वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स को लेकर क्या बातें कहीं?

1) एस्ट्राजेनेका ने कोर्ट के समक्ष दायर लीगल डॉक्यूमेंट में कहा है कि यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के साथ मिलकर तैयार की गई कोरोना वैक्सीन से साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. ये साइड इफेक्ट्स थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम जैसे हो सकते हैं. लेकिन ये बहुत दुर्लभ हैं.

2) एस्ट्राजेनेका ने कोर्ट को बताया कि लेकिन ये जान लेना भी जरूरी है कि कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाने की स्थिति में भी थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम हो सकता है. ऐसे में ये कहना कि वैक्सीन लगवाने के बाद लोग इस सिंड्रोम से जूझ रहे हैं, सही नहीं है.

3) कंपनी का कहना है कि कई स्वतंत्र स्टडीज में इस वैक्सीन को कोरोना से निपटने में बेहद कारगर बताया गया है. ऐसे में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इन स्टडीज पर गौर करना जरूरी है.

4) कंपनी का मानना है कि वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स बेहद दुर्लभ हैं. कंपनी ने कहा कि मरीज की सुरक्षा हमारी सर्वोपरि प्राथमिकता है. हमारी दवाएं उचित मानकों पर खरी उतरी हैं और हमने वैक्सीन सहित सभी दवाओं का सुरक्षित उपयोग सुनिश्चित किया है.

5) कंपनी ने कोर्ट के समक्ष कहा कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल और दुनियाभर में इसकी स्वीकार्यता से पता चलता है कि बड़े पैमाने पर टीकाकरण प्रोग्राम से लाभ हुआ है, जो वैक्सीन के संभावित साइड इफेक्ट्स के जोखिम को कम करता है.

6) कंपनी का कहना है कि कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन की मदद से दुनियाभर में 60 लाख लोगों की जिंदगियां बचाई गई हैं.

7) एस्ट्राजेनेका का कहना है कि वैक्सीन लगने के बाद कई तरह की समस्याओं का दावा कर रहे लोगों की स्थिति से वे चिंतित हैं. लेकिन हम अभी भी अपने इस दावे पर कायम हैं कि इसके दुष्प्रभाव अति से अति दुर्लभ मामलों में ही सामने आ सकते हैं.

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