मीरा-भायंदर और वसई–विरार पुलिस आयुक्तालय द्वारा गणेशोत्सव 2025 में मूर्तियों की तस्वीरों पर लगाया गया प्रतिबंध आदेश निरस्त कर दिया गया।धार्मिक संगठनों ने अपील की कि संवेदनशील तस्वीरें साझा करते समय सावधानी बरती जाए।
मीरा-भायंदर, 2 सितंबर: मीरा-भायंदर, वसई–विरार पुलिस आयुक्तालय के अंतर्गत उप आयुक्त अभिक विरकर द्वारा वर्ष 2015 में जारी किया गया वह विवादित आदेश, जिसमें गणेशोत्सव और अन्य धार्मिक पर्वों के दौरान विसर्जन के बाद तालाब या समुद्र किनारे पड़ी मूर्तियों की तस्वीरें लेने, प्रकाशित करने और प्रसारित करने पर रोक लगाई गई थी, अब निरस्त कर दिया गया है।
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आदेश का पृष्ठभूमि
2 जनवरी 2015 को जारी आदेश में कहा गया था कि विसर्जन के बाद जब मूर्तियाँ किनारे पर लहरों के साथ दिखाई देती हैं, तो कई लोग उनकी तस्वीरें लेकर सोशल मीडिया पर साझा करते हैं। इससे धार्मिक भावनाएँ आहत होती हैं और सामाजिक असंतोष फैल सकता है। साथ ही, नगर निगम द्वारा मूर्तियों को एकत्र करने की प्रक्रिया और दृश्य लोगों की आस्था को ठेस पहुँचा सकता है।
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कानूनी प्रावधानों का हवाला
इस आदेश को लागू करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 21 और भारतीय नागरिक संहिता, 2023 की धारा 163 का हवाला दिया गया था। आदेश स्पष्ट रूप से बताता था कि 6 सितंबर 2025 से 14 सितंबर 2025 तक मीरा-भायंदर और वसई–विरार क्षेत्र में मूर्तियों की तस्वीरें लेना व प्रसारित करना प्रतिबंधित रहेगा।
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उठे सवाल और विरोध
आदेश जारी होते ही कई सवाल खड़े हुए। सामाजिक और कानूनी विशेषज्ञों का मानना था कि तस्वीरें लेना और साझा करना नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है। इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। पर्यावरणविदों ने कहा कि गणेशोत्सव के बाद मूर्तियों की वास्तविक स्थिति को दिखाना ज़रूरी है ताकि लोग Plaster of Paris और रासायनिक रंगों से बनी मूर्तियों के दुष्परिणाम समझ सकें। कई संगठनों ने इस आदेश को जनता की आँखों पर पर्दा डालने जैसा बताया।
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आदेश का निरसन
लंबी कानूनी और प्रशासनिक समीक्षा के बाद अंततः यह आदेश रद्द कर दिया गया। अधिकारियों ने माना कि सोशल मीडिया के युग में तस्वीरें साझा करने पर रोक लगाना व्यावहारिक नहीं है।
साथ ही, न्यायपालिका ने भी स्पष्ट किया कि धार्मिक भावनाओं की सुरक्षा ज़रूरी है, लेकिन यह संविधान प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन करके नहीं हो सकता।
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जनता और समाज पर असर
आदेश निरस्त होने के बाद नागरिकों और संगठनों ने राहत की सांस ली।धार्मिक संगठनों ने अपील की कि संवेदनशील तस्वीरें साझा करते समय सावधानी बरती जाए। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कहा कि अब विसर्जन के बाद मूर्तियों की तस्वीरें जागरूकता अभियान के लिए उपयोग की जा सकेंगी। प्रशासन ने भी दोहराया कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना और भावनाओं का सम्मान करना नागरिकों की सामूहिक ज़िम्मेदारी है।
गणेशोत्सव केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। विसर्जन के बाद तस्वीरों पर रोक लगाने का आदेश एक संवेदनशील प्रयास था, लेकिन यह व्यावहारिक और न्यायसंगत नहीं था। आदेश निरस्त होने के बाद अब नागरिकों की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ गई है कि वे धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ावा दें।