NH 48: पर निर्माण में देरी, गड्ढों की भरमार और लापरवाह ठेकेदारों की वजह से 31 लोगों की जान गई। क्या ये “गड्ढे से हत्या” नहीं है? कार्रवाई कब?
मुंबई, 31 जुलाई: देश की जीवनरेखा माने जाने वाला नेशनल हाइवे-48 (NH-48) आज मौत की पटरी बन चुका है। जनवरी से मई 2025 के बीच 83 हादसे और 31 जानें चली गईं। यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि सरकारी और ठेकेदारों की लापरवाही से हुई सुनियोजित हत्या है। गड्ढों से भरे रास्ते, अधूरे निर्माण कार्य और ट्रैफिक जाम ने इसे यात्री नहीं, शव यात्रा का रास्ता बना दिया है।
533 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट का काम निर्मल बिल्डइन्फ्रा प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया है, और अब तक 35% भुगतान भी हो चुका है। फिर भी 121 किलोमीटर के इस हिस्से पर सफेद टॉपिंग अधूरी है। प्रोजेक्ट मैनेजर सुहास चिटनिस और NHAI के अफसरों की चुप्पी सवालों के घेरे में है। आखिर गड्ढे कौन बना रहा है? क्यों नहीं भरे जा रहे? जनता पूछ रही है—“ये खून किसके सिर?”
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पालघर सांसद हेमंत सवरा ने इस पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से जांच और कड़ी कार्रवाई की मांग
पालघर सांसद हेमंत सवरा ने इस पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से जांच और कड़ी कार्रवाई की मांग की है। इन शिकायतों में उन्होंने लिखा इस खराब सड़क स्थिति के कारण बार-बार ट्रैफिक जाम, वाहनों को नुकसान और दुर्घटनाओं का गंभीर खतरा बना हुआ है। यह समस्या हजारों दैनिक यात्रियों और स्थानीय निवासियों को प्रभावित कर रही है, जो इस महत्वपूर्ण मार्ग पर निर्भर हैं।”डॉ. सवारा ने श्री गडकरी से अपील की कि वे संबंधित अधिकारियों को तुरंत घोड़बंदर से तलासरी खंड की मरम्मत और पुनरुत्थान कार्य शुरू करने का निर्देश दें। साथ ही, उन्होंने निर्माण गुणवत्ता का तकनीकी ऑडिट कराने, ठेकेदारों की जवाबदेही तय करने और नियमित रखरखाव एवं गड्ढों की निगरानी के लिए एक योजना तैयार करने की मांग की।
तत्काल कार्रवाई की मांग
यह पत्र पालघर जिले में रहने वाले लोगों और NH-48 से रोज़ यात्रा करने वालों की परेशानी को उजागर करता है और सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग करता है। हाल ही में हुए सड़क हादसे में हुई अगर ये मौतें गड्ढों की वजह से हुई हैं, तो जिम्मेदार सिर्फ ट्रक ड्राइवर नहीं, बल्कि वो अधिकारी और ठेकेदार हैं, जिनकी लापरवाही ने सड़क को मौत का जाल बना दिया। अब सवाल उठता है: क्या गड्ढा सिर्फ हादसा था, या सिस्टम की साजिश से की गई हत्या? क्या सरकार दोषियों पर केस चलाएगी, या फिर एक बेकसूर ड्राइवर ही बलि का बकरा बनेगा? आखिर 650 करोड़ के कॉन्ट्रैक्ट में आखिर देरी क्यों?