मुंबई/ठाणे: मुंबई में एक बार फिर लाउडस्पीकर से अज़ान को लेकर बहस तेज़ हो गई है। सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों के बावजूद, यह मुद्दा सामाजिक से ज़्यादा राजनीतिक रंग ले चुका है। कुछ मस्जिदों ने ध्वनि प्रदूषण नियमों का पालन करते हुए लाउडस्पीकर की आवाज़ कम करने के लिए विशेष मशीनें लगाई हैं, तो वहीं मुस्लिम समाज के कुछ वर्गों ने पुलिस सर्कुलर के खिलाफ कानूनी लड़ाई छेड़ने की तैयारी कर ली है।
अज़ान – आस्था बनाम शोर?
अज़ान यानी नमाज़ के लिए बुलावा – एक बेहद श्रद्धेय कार्य है। परंतु यह धार्मिक परंपरा तब विवाद का विषय बनती है जब इसे ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर से, रिहायशी इलाकों में लाउडस्पीकर से प्रसारित किया जाता है।
अदालती आदेशों के अनुसार, रिहायशी इलाकों में दिन के समय अधिकतम 55 डेसिबल और रात में 45 डेसिबल से अधिक ध्वनि की अनुमति नहीं है। लेकिन कुछ शिकायतों के चलते अब पुलिस सख्ती से इन नियमों को लागू कराने के मूड में है।
लाउडस्पीकर कंट्रोल मशीन – मस्जिदों की नई पहल
मीरा रोड की जामा मस्जिद अल-शम्स ने अज़ान के लिए लाउडस्पीकर की आवाज़ को तय सीमा में रखने के लिए लगभग ₹1500 की लागत वाली विशेष डेसिबल कंट्रोल मशीन लगाई है।
मुख्य ट्रस्टी सैयद मुजफ्फर हुसैन का कहना है कि उनकी मस्जिद 2022 से ही हर अज़ान के डेसिबल स्तर का रिकॉर्ड रख रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए अब कई अन्य मस्जिदें भी इसी राह पर चल पड़ी हैं।
राजनीतिक हलचल भी तेज
भाजपा नेता किरीट सोमैया और राज ठाकरे पहले भी लाउडस्पीकर के मुद्दे पर बयानबाज़ी कर चुके हैं। उन्होंने पुलिस से मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने की मांग की थी। जनवरी 2025 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस संबंध में दिशा-निर्देश दिए थे जिनमें चेतावनी, 5000 रुपये का जुर्माना और ज़ब्ती जैसी कार्रवाई शामिल थी।
मस्जिद अजमेरी के ट्रस्टी अबुल हसन खान बताते हैं कि हाल ही में पुलिस ने उनकी मस्जिद का दौरा किया और नियमों के तहत कार्रवाई की चेतावनी दी। इसके बाद मस्जिद प्रबंधन ने ध्वनि सीमा में अज़ान प्रसारित करने का आश्वासन दिया।
कानूनी लड़ाई की तैयारी
साकीनाका में एक मीटिंग के दौरान पूर्व मंत्री आरिफ नसीम खान ने ऐलान किया कि वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ मुच्छला के नेतृत्व में एक कानूनी टीम 11 मई 2025 के सर्कुलर को अदालत में चुनौती देगी।
इस सर्कुलर में धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर की अनुमति लेने के लिए प्रॉपर्टी कार्ड और वक्फ या चैरिटी रजिस्ट्रेशन का प्रमाण देना अनिवार्य किया गया है, जबकि अदालतों ने ऐसी कोई शर्त तय नहीं की है।
मुस्लिम समाज में मतभेद
जहां कुछ लोग अदालत के आदेशों और ध्वनि नियंत्रण का समर्थन कर रहे हैं, वहीं कुछ इसके विरोध में आवाज़ उठा रहे हैं।
व्यवसायी वी आर शरीफ जैसे लोग कहते हैं कि – “हर किसी के पास मोबाइल है, जिससे अज़ान के लिए अलार्म सेट किया जा सकता है। हमें अपने पड़ोसियों की शांति का ध्यान रखना चाहिए।”
जामा मस्जिद ऑफ बॉम्बे के ट्रस्टी शोएब खतीब भी कहते हैं कि – “हम दिन में चार बार ही लाउडस्पीकर का उपयोग करते हैं और सुबह की अज़ान बिना लाउडस्पीकर के दी जाती है। नियमों का पालन ज़रूरी है।”
मुंबई कांग्रेस के महासचिव आसिफ फारूकी भी कहते हैं – “शोर पैदा करना इबादत नहीं है। हमें अपने बच्चों को शिक्षा और रोजगार में आगे बढ़ाना चाहिए, न कि ध्वनि प्रदूषण में।”
निष्कर्ष: क्या यह धार्मिक मामला है या राजनीतिक मुद्दा?
मुंबई में मस्जिदों द्वारा स्वेच्छा से डेसिबल मशीनें लगाना यह दर्शाता है कि एक बड़ा वर्ग शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पक्ष में है। लेकिन साथ ही, पुलिस सर्कुलर की शर्तों और नेताओं की बयानबाज़ी से यह मुद्दा धार्मिक कम और राजनीतिक अधिक बनता जा रहा है।
आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि अदालतें और प्रशासन इस संवेदनशील विषय पर संतुलित दृष्टिकोण कैसे अपनाते हैं।
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