रक्षाबंधन के दिन, जब बहनें भाई से मिलने निकलीं, मुंबई-अहमदाबाद हाइवे पर मरम्मत और जाम ने उनकी राह रोक दी। राखी का मुहूर्त बीत गया, लेकिन उम्मीद अब भी बाकी है , शायद शाम तक कलाई पर बंध जाए वो धागा…
मुंबई, 9 अगस्त: 9 अगस्त की सुबह जैसे ही रक्षाबंधन का दिन शुरू हुआ, घरों में उत्साह था। बहनें राखी, मिठाई और छोटे-छोटे उपहार लेकर भाईयों से मिलने की तैयारी में थीं। इस बार राखी बांधने का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक था, इसलिए कई महिलाएं 7–8 बजे ही सफर पर निकल पड़ीं, ताकि समय पर पहुँचकर अपने भाई की कलाई पर रक्षा का धागा बाँध सकें।
लेकिन मुंबई-अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-48) पर शुरू हुई मरम्मत और डायवर्जन की योजना ने इस यात्रा को जाम और इंतज़ार में बदल दिया। लोग धीरे-धीरे रेंगते ट्रैफिक में फंसे रहे, और रक्षाबंधन की वो सुबह, जो अपनों के साथ बितानी थी, सड़क पर बीतने लगी। कई महिलाएं लगातार वाहन में बैठी रहीं, एक ही जगह घंटों तक रुकी रहीं, दिल में यही सोचते हुए कि शायद शाम तक भाई के घर पहुंच जाएं।
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यात्रा नहीं, संघर्ष बन गया रक्षाबंधन का सफर
रक्षाबंधन के मौके पर आमतौर पर घरों में चहल-पहल होती है, लेकिन इस बार विरार, वसई, मीरा रोड, भिवंडी और ठाणे से निकलने वालों के लिए यह सफर आसान नहीं था। ट्रैफिक डायवर्जन के बाद चिंचोटी-भिवंडी मार्ग और आंतरिक सड़कों पर इतना दबाव आ गया कि कई इलाकों में वाहन घंटों एक ही जगह रुके रहे।
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रास्तों पर थमी भावनाएं, स्टेशन और ट्रेनें भी बनीं बोझिल
जिन लोगों ने गाड़ी छोड़कर ट्रेन से जाने की कोशिश की, उन्हें भी निराशा ही हाथ लगी। लोकल ट्रेनों में पहले से ही भीड़ थी, और स्टेशन तक पहुँचने के रास्ते भी जाम से भरे थे। प्लेटफॉर्म के बाहर लंबी कतारें थीं और अंदर धक्का-मुक्की का माहौल था। इस बीच सोशल मीडिया पर लोग अपनी परेशानी साझा कर रहे थे। किसी ने वीडियो में ट्रैफिक की लंबी लाइन दिखाई, तो किसी ने लिखा कि “त्योहार के इस दिन कम से कम प्रशासन को ट्रैफिक का ध्यान रखना चाहिए था।”
प्रशासन की योजना पर सवाल उठने लगे -रक्षाबंधन जैसे खास दिन पर मरम्मत कार्य क्यों शुरू किया गया? क्या त्योहार के बाद इन कामों को टाला नहीं जा सकता था?
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उम्मीद की डोर से बंधी राखियां
त्योहारों का समय भावनाओं से भरा होता है, और रक्षाबंधन तो भाई-बहन के उस रिश्ते का प्रतीक है जिसमें समय, दूरी और तकलीफों के बावजूद जुड़ाव बना रहता है। इस बार की राखी ने यही दिखाया, कुछ बहनों ने अपनी यात्रा रद्द कर दी, कुछ अब भी रास्ते में हैं, और कुछ शाम तक पहुंचने की दुआ कर रही हैं।
यह घटना कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों की संवेदनाओं से जुड़ी है, जो सिर्फ एक दिन चाहते थे, अपनों के साथ बिताने का। प्रशासनिक योजना की कमी और संचार की विफलता ने इस दिन को कुछ लोगों के लिए कठिन बना दिया।
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