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कुत्ते के हमले में गई जान
कुछ दिन पहले गाँव के एक बंदर की मौत आवारा कुत्ते के हमले में हो गई। यह बंदर लंबे समय से गाँव में ही पल-बढ़ रहा था और ग्रामीणों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गया था। उसकी चंचल हरकतें और सभी के प्रति अपनापन गाँववालों को परिवार का हिस्सा महसूस कराता था। लेकिन अचानक उसकी मृत्यु ने पूरे गाँव को गमगीन कर दिया।
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शोक और संस्कार
बंदर की मौत के बाद गाँव के लोगों ने उसे केवल एक जानवर नहीं माना, बल्कि परिवार के सदस्य की तरह श्रद्धांजलि दी। ग्रामीणों ने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार पाँच दिनों का शोक मनाया और मुंडन संस्कार किया। इसके बाद गाँव के हनुमान मंदिर परिसर में सामूहिक रूप से पिंडदान और दशक्रिया अनुष्ठान आयोजित किया गया।
इस अनुष्ठान में पूरे गाँव के लोग शामिल हुए। गाँव के कई लोगों ने बंदर की तस्वीर रखकर उसे श्रद्धांजलि अर्पित की। माहौल शोकपूर्ण होने के बावजूद ग्रामीणों का यह कदम उनके पशु-प्रेम और संवेदनशीलता का बड़ा उदाहरण बन गया।
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मानवता और करुणा का संदेश
यह घटना समाज को एक अनोखा संदेश देती है कि इंसान और जानवर के बीच भी आत्मीय संबंध हो सकते हैं। ग्रामीणों ने दिखाया कि दया और करुणा केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि जानवरों के लिए भी उतनी ही जरूरी है।
गाँव के बुजुर्गों ने कहा कि “बंदर हमारे परिवार का हिस्सा था। उसकी मौत ने हमें वैसा ही दुख दिया, जैसा किसी अपने को खोने पर होता है। इसलिए हमने पूरे संस्कार किए।”
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चर्चा का विषय बना गाँव
बलदे गाँव की यह घटना अब पूरे महाराष्ट्र में चर्चा का विषय बन गई है। लोग इसे देखकर हैरान भी हैं और भावुक भी। इंसानों की तरह एक बंदर का अंतिम संस्कार करना और उसके लिए दशक्रिया करना, ग्रामीणों के जुनून और प्रेम को दर्शाता है।
शिरपुर के बलदे गाँव का यह अनोखा कदम समाज में जानवरों के प्रति दया, संवेदना और समानता की भावना को मजबूत करता है। यह घटना आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणास्रोत है कि इंसान और जानवर का रिश्ता केवल उपयोगिता तक सीमित नहीं, बल्कि प्यार और परिवार जैसा भी हो सकता है।
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