तुंगारेश्वर महादेव मंदिर प्रवेश शुल्क विवाद: श्रद्धालुओं पर ‘कर’ का बोझ, आस्था पर सवाल
📝 प्रस्तुति: Metro City Samachar विशेष संवाददाता
वसई के घने जंगलों और पर्वतों के बीच स्थित तुंगारेश्वर महादेव मंदिर हर साल लाखों श्रद्धालुओं का आस्था केंद्र बनता है। विशेष रूप से सावन के पावन महीने में यहां भगवान शिव के भक्तों की भीड़ उमड़ती है। लेकिन इसी आस्था की राह में आज एक गंभीर सवाल खड़ा हो गया है — क्या मंदिर तक पहुंचने की कीमत वसूलना उचित है?
🌿 पर्यटन क्षेत्र घोषित, लेकिन तीर्थयात्रियों पर भार क्यों?
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वर्ष 2001 में महाराष्ट्र सरकार ने तुंगारेश्वर को ‘क’ श्रेणी का पर्यटन क्षेत्र घोषित किया था
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इससे मंदिर की प्रसिद्धि तो बढ़ी, लेकिन वनविभाग ने इसे रेवेन्यू स्पॉट की तरह ट्रीट करना शुरू कर दिया
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परशुराम कुंड, बालयोगी सदानंद महाराज आश्रम जैसी आध्यात्मिक विरासतें यहां और जुड़ी हुई हैं
दरअसल, तुंगारेश्वर मंदिर तक जाने का रास्ता संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत आने वाले पक्षी अभयारण्य से होकर गुजरता है। वनविभाग ने इस रास्ते को “पर्यटन क्षेत्र” घोषित कर दिया है और अब हर श्रद्धालु से प्रवेश शुल्क वसूला जा रहा है। पैदल चलने वालों से ₹50, बाइक सवार से ₹71, और अगर कोई कार से आता है तो ₹178 के अलावा कार में बैठे हर व्यक्ति से ₹51 अतिरिक्त शुल्क मांगा जा रहा है।
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🔍 प्रवेश शुल्क कितना है?
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पैदल यात्री: ₹50
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बाइक के साथ: ₹71 प्रति व्यक्ति
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कार से: ₹178 + ₹50 प्रति यात्री
यदि कोई मध्यम वर्गीय परिवार मंदिर में दर्शन हेतु आता है, तो केवल एंट्री टैक्स के तौर पर उन्हें ₹400 से ₹700 तक चुकाने पड़ते हैं — जो कई लोगों की सामर्थ्य से बाहर है।
❝श्रद्धा का केंद्र या टैक्स का गेट?❞
वसई पूर्व स्थित तुंगारेश्वर महादेव मंदिर, जो पालघर, ठाणे, कल्याण और मुंबई क्षेत्र के लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, वहां दर्शन के लिए अब धन वसूली के नाम पर भारी कर वसूला जा रहा है।
वनविभाग द्वारा लगाए गए इस शुल्क को लेकर न सिर्फ हिन्दू जनमानस में असंतोष, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक आक्रोश भी गहराता जा रहा है।
🛣️ सुविधाएं? कोई नहीं!
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श्रद्धालुओं के लिए शौचालय, पेयजल, प्राथमिक चिकित्सा तक की व्यवस्था नहीं
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आधे रास्ते में वाहन रोकने की बाध्यता
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सड़क की स्थिति भी पैदल चलने योग्य नहीं
यह शुल्क केवल मंदिर तक पहुंचने के लिए है, जबकि रास्ते में न तो कोई पीने का पानी है, न शौचालय, न प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा। वसई फाटा से लेकर मंदिर तक की सड़क की हालत भी खराब है। श्रद्धालुओं को अक्सर आधे रास्ते में अपनी गाड़ी छोड़कर पैदल चलना पड़ता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यह शुल्क किस चीज़ के बदले में वसूला जा रहा है?
⚠️ विवादित तरीके से वसूली
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केवल नकद भुगतान स्वीकार किया जाता है
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UPI/QR/डिजिटल पेमेंट विकल्प नहीं
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भुगतान के बदले आधिकारिक प्रिंटेड रसीद नहीं, केवल स्टांप लगी पावती
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इससे वसूली की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं
वनविभाग का यह रवैया केवल आर्थिक बोझ नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था पर भी चोट है। श्रद्धालु सवाल कर रहे हैं कि जब देश डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहा है, तब इस चेक पोस्ट पर आज भी केवल नकद भुगतान क्यों लिया जा रहा है? न कोई UPI सुविधा है, न कार्ड, न QR कोड। इतना ही नहीं, भुगतान की कोई आधिकारिक प्रिंटेड रसीद नहीं दी जाती — सिर्फ एक स्टांप लगी हुई पर्ची मिलती है, जिससे इस वसूली की पारदर्शिता पर भी गंभीर शक होता है।
यह पहली बार नहीं है जब तुंगारेश्वर में इस तरह की वसूली पर सवाल उठे हों। वर्ष 2016 में भी इसी प्रकार का विवाद हुआ था, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने श्रद्धालुओं से कोई शुल्क न लेने का आदेश दिया था। कुछ समय तक यह आदेश लागू भी रहा, लेकिन अब फिर से वही स्थिति दोहराई जा रही है — बल्कि इस बार शुल्क और भी ज्यादा बढ़ा दिया गया है।
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🔴 क्या यह शुल्क वैध है?
पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पहले ही आदेश दिया था कि संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान (जिसके अधीन तुंगारेश्वर पक्षी अभयारण्य आता है) तीर्थयात्रियों और पर्यटकों से कोई शुल्क नहीं वसूलेगा।
ट्रस्ट सदस्य रमेश घोरखाना के अनुसार, 5 साल पहले शुल्क रद्द भी किया गया था। फिर किसके आदेश पर यह दोबारा शुरू हुआ?
मंदिर ट्रस्ट के सदस्य रमेश घोरखाना बताते हैं कि बीते वर्षों में कई बार वनविभाग से शुल्क माफ करने की अपील की गई, लेकिन अब तक कोई स्थायी हल नहीं निकला। शिवसेना (उद्धव गुट) के वसई तालुका प्रमुख काकासाहेब मोटे ने इस विषय को लेकर पालघर के पालक मंत्री गणेश नाईक को ज्ञापन सौंपा है और मांग की है कि श्रद्धालुओं से वसूला जा रहा यह अन्यायपूर्ण शुल्क तुरंत रद्द किया जाए।
🔥 भक्तों में आक्रोश
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शिवसेना (उद्धव गुट) के वसई तालुका प्रमुख काकासाहेब मोटे ने पालघर जिल्ह्याचे पालकमंत्री गणेश नाईक को पत्र देकर शुल्क रद्द करने की मांग की है
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उन्होंने कहा:
“भाविकांवर अन्याय करणारा हा कर तातडीने रद्द करण्यात यावा व दर्शनार्थींना विनामूल्य प्रवेश देण्यात यावा”
❓ बड़े सवाल जो उठते हैं:
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जब पूर्व मुख्यमंत्री ने शुल्क रद्द करने का आदेश दिया था, तो यह दोबारा क्यों शुरू हुआ?
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डिजिटल इंडिया में डिजिटल पेमेंट विकल्प क्यों नहीं?
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इतनी भारी रकम लेकर श्रद्धालुओं को सुविधाएं क्यों नहीं?
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क्या यह श्रद्धा का स्थल है या टैक्स वसूली केंद्र?
श्रद्धालु और सामाजिक कार्यकर्ता इसे “हिंदू आस्था पर टैक्स” करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि जब सरकार खुद को हिंदुत्व समर्थक बताती है, तब शिव के भक्तों पर इस प्रकार का आर्थिक भार डालना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए यह दर्शन अब असंभव सा हो गया है।
कुल मिलाकर, तुंगारेश्वर महादेव मंदिर जाने का मार्ग आज श्रद्धा की यात्रा नहीं, बल्कि शुल्क और संघर्ष की राह बन चुका है। जब देश में मंदिरों को पर्यटन क्षेत्र बना दिया जाता है, तो क्या भक्त सिर्फ पर्यटक रह जाते हैं? यह सवाल आज हर शिवभक्त के मन में गूंज रहा है।
❝श्रद्धा की राह में टैक्स की दीवार — आखिर कब तक?❞
✅ जनता की मांग
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तत्काल प्रभाव से प्रवेश शुल्क रद्द किया जाए
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डिजिटल पेमेंट सिस्टम शुरू किया जाए
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श्रद्धालुओं के लिए बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं
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वनविभाग की उत्तरदायित्वहीनता पर कार्रवाई की जाए
तुंगारेश्वर महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, यह लाखों श्रद्धालुओं की श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।
आस्था पर टैक्स लगाकर, सरकार और वनविभाग ना सिर्फ आर्थिक अन्याय कर रहे हैं, बल्कि एक गहरे धार्मिक असंतोष को जन्म दे रहे हैं।
❝श्रद्धा की राह में टैक्स की दीवार, अब ज़्यादा दिन नहीं टिकेगी।❞
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