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वसई में श्री स्वामी समर्थ प्रकट दिन की भव्य झांकी, भक्तों की भीड़ उमड़ी

वसई श्री स्वामी समर्थ प्रकट दिन झांकी
वसई श्री स्वामी समर्थ प्रकट दिन झांकी

वसई तालुका के नाले गांव स्थित म्हात्रे परिवार ने गणेशोत्सव पर अक्कलकोट श्री स्वामी समर्थ प्रकट दिन का भव्य दृश्य तैयार किया है। भक्तों की भारी भीड़ इसे देखने उमड़ रही है।

वसई, 2 सितंबर: वसई तालुका के नाले गांव में गणेशोत्सव के अवसर पर इस वर्ष श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है। यहाँ रहने वाले मनीष म्हात्रे और प्रशांत म्हात्रे के घर पर एक बेहद ही सुंदर और भव्य धार्मिक दृश्य सजाया गया है, जो अक्कलकोट के श्री स्वामी समर्थ महाराज के प्रकट दिन को दर्शाता है। भक्तों की भीड़ लगातार इस दृश्य के दर्शन के लिए उमड़ रही है। यह मनमोहक झांकी अनंत चतुर्दशी तक दर्शकों के लिए खुली रहेगी।
  • श्री स्वामी समर्थ का प्रकट दिन – ऐतिहासिक महत्व

श्री स्वामी समर्थ महाराज को भगवान दत्तात्रेय का तीसरा पूर्णावतार माना जाता है। उनसे पहले श्रीपाद श्रीवल्लभ और श्री नरसिंह सरस्वती प्रकट हुए थे।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, श्री नरसिंह सरस्वती महाराज ने गंगापुर में निरगुण पदुका स्थापित करने के बाद कर्दली वन में प्रवेश किया, जहाँ उन्होंने लगभग 300 वर्षों तक कठोर तपस्या की। इस दौरान उनके चारों ओर दीमकों का घेरा बन गया। बाद में जब एक लकड़हारे की कुल्हाड़ी गलती से उस घेरे पर गिरी, तो उसी क्षण श्री स्वामी समर्थ महाराज प्रकट हुए

इसी दिव्य प्रसंग को अथर्व, ध्रुव, ईशानी और आर्यन – चार भाई-बहनों ने फिल्म और ऑडियो की मदद से महज एक हफ्ते में जीवंत रूप दिया। लगभग साढ़े चार मिनट की इस झांकी को स्थानीय निवासी राजेश राऊत ने “भक्तिभाव जगाने वाला और अत्यंत सुंदर” बताया।

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  • पर्यावरणपूरक गणेशोत्सव का उदाहरण

म्हात्रे परिवार हर साल शाडू माटी की पर्यावरणपूरक गणेश प्रतिमा की स्थापना करता है। उनकी परंपरा है कि गणपति बप्पा के सामने धार्मिक और पौराणिक प्रसंग को झांकी के रूप में प्रस्तुत किया जाए।

इस वर्ष भी पूरे दृश्य निर्माण में केवल कागज़, गत्ता, लकड़ी, बांस की खपचियाँ और प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया गया। परिवार का कहना है कि “भक्ति के साथ-साथ प्रकृति का सम्मान भी ज़रूरी है।”

  • श्रद्धा और संस्कृति का संगम

नाले गांव का यह आयोजन केवल एक धार्मिक झांकी नहीं, बल्कि वसई की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है।यह परंपरा न केवल आस्था को मजबूत करती है, बल्कि नई पीढ़ी में आध्यात्मिकता और संस्कृति के प्रति जागरूकता भी बढ़ाती है।

श्री स्वामी समर्थ प्रकट दिन की यह झांकी हजारों भक्तों को आकर्षित कर रही है और गणेशोत्सव की भव्यता में चार चाँद लगा रही है।

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