Vasai-Virar News: मानसून की शुरुआत के साथ वसई के राना वन में जंगली सब्जियों की आवक बढ़ी। आदिवासी परिवार सड़क किनारे सब्जियां बेचकर रोज़ाना 500-600 रुपये तक कमा रहे हैं। प्राकृतिक और औषधीय गुणों से भरपूर ये सब्जियां पर्यटकों को भी आकर्षित कर रही हैं।
वसई, 1 जुलाई : मानसून के आगमन के साथ ही वसई तालुका के पूर्वी भाग यानी राना वन क्षेत्र में जंगली सब्जियों की भरमार हो गई है। इन सब्जियों को आदिवासी परिवार जंगल से इकट्ठा करते हैं और सड़क किनारे बैठकर बेचते हैं। इससे उन्हें बरसात के मौसम में मौसमी रोजगार मिल रहा है।
इन जंगली सब्जियों में मूंगा, चावल भाजी, खपरा, अंबाड़ी, मायालु, आलू के पत्ते, शेवगा फली, सूखी, टकला, शेवली, कड़वा कंद और जंगली प्याज जैसी कई किस्में शामिल हैं। इन सब्जियों की खास बात यह है कि इन्हें किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक की जरूरत नहीं होती और ये पूरी तरह प्राकृतिक रूप से उगती हैं। साथ ही, इनमें औषधीय गुण भी होते हैं।
• रोजाना 500-600 रुपये की कमाई
जंगल से सब्जियां लाकर बेचने वाले आदिवासी परिवारों की रोजाना की कमाई लगभग 500 से 600 रुपये तक हो जाती है। महिलाएं बताती हैं कि ये रोजगार बारिश के सीजन में ही मिलता है, लेकिन अगर मौसम अच्छा रहा तो ये कमाई और बढ़ सकती है।
• वन कटाई से घट रही सब्जियों की उपलब्धता
हालांकि, पिछले कुछ सालों में जंगलों और पहाड़ियों पर अतिक्रमण बढ़ने से वन क्षेत्र कम हो रहा है। इससे जंगली सब्जियों की संख्या में भी गिरावट आई है। पहले नजदीक के इलाकों में ही सब्जियां मिल जाती थीं, अब इन्हें खोजने के लिए पूरा जंगल छानना पड़ता है।
जंगली सब्जियां जहां स्वाद और सेहत का खजाना हैं, वहीं यह आदिवासी परिवारों के लिए बरसात के मौसम में रोजगार का एक अच्छा जरिया भी हैं। लेकिन अगर वन क्षेत्र का संरक्षण नहीं किया गया तो यह परंपरा और रोज़गार दोनों खतरे में पड़ सकते हैं।
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