मुंबई/वसई-वीरार/उल्हासनगर/भिवंडी – जैसे-जैसे मानसून करीब आ रहा है, महाराष्ट्र के कई इलाकों में लोगों की चिंता बढ़ रही है। खासकर वसई-वीरार, भिवंडी और उल्हासनगर जैसे शहरी क्षेत्रों में स्थित सैकड़ों जर्जर इमारतें अब भी सैकड़ों लोगों की ज़िंदगियों को खतरे में डाल रही हैं। इन इमारतों को लेकर मनपा (महानगरपालिका) (VVMC) ने गंभीर रुख अपनाया है और 791 इमारतों को ‘खतरनाक’ घोषित करते हुए नोटिस जारी किए हैं।
वसई-वीरार में 791 इमारतें खतरनाक घोषित, 89 को सबसे अधिक खतरे वाली कैटेगरी में रखा गया
वसई-वीरार महानगर पालिका (VVMC) ने एक सर्वेक्षण के आधार पर खुलासा किया कि क्षेत्र में स्थित 791 इमारतें संरचनात्मक रूप से असुरक्षित हैं, जिनमें से 89 इमारतें बेहद खतरनाक श्रेणी में आती हैं। इन सभी इमारतों के रहवासियों को नोटिस भेज दिए गए हैं, जिसमें उन्हें या तो मरम्मत करने या तुरंत खाली करने का निर्देश दिया गया है।
VVMC अधिकारियों के अनुसार, मानसून से पहले हर साल यह सर्वे किया जाता है, ताकि बारिश के दौरान दुर्घटनाओं को रोका जा सके। हालाँकि सवाल यह भी उठ रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में जर्जर इमारतें अब तक खाली क्यों नहीं कराई गईं?

भिवंडी में मनपा ने तोड़ी 21 जर्जर इमारतें
भिवंडी-निजामपुर महानगर पालिका ने इस साल अब तक 21 जर्जर इमारतों को ध्वस्त किया है। कुल 259 खतरनाक इमारतों की सूची तैयार की गई थी, जिनमें से कई खाली कराई जा चुकी हैं। कुछ मकान मालिकों और निवासियों ने नोटिस मिलने के बावजूद स्थान खाली नहीं किया, जिसके चलते मनपा ने बलपूर्वक कार्रवाई की।
भिवंडी में 2020 में एक पुरानी इमारत के ढहने से 40 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। तब से प्रशासन अधिक सतर्क हो गया है, पर अभी भी कई लोग जोखिम में रह रहे हैं।

उल्हासनगर में 263 इमारतें ‘जर्जर’ घोषित – निवासियों में डर का माहौल
उल्हासनगर महानगरपालिका (UMC) ने 263 इमारतों को ‘जर्जर’ श्रेणी में रखा है। इनमें से कई इमारतें दशकों पुरानी हैं और उनमें कोई सुधार कार्य नहीं हुआ है। जोन 3 और जोन 4 में जर्जर इमारतों की संख्या सबसे अधिक है।
कुछ महत्वपूर्ण आँकड़े:
- जोन 1: 75 इमारतें
- जोन 2: 84 इमारतें
- जोन 3: 47 इमारतें
- जोन 4: 34 इमारतें
- जोन 5: 23 इमारतें
स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे वर्षों से मरम्मत के लिए अनुरोध कर रहे हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
CCTV लगाने और फंड का उपयोग नहीं होने पर भी उठे सवाल
मनपा प्रशासन द्वारा जर्जर इमारतों की निगरानी के लिए लगाए गए 285 CCTV कैमरों की स्थिति भी संदिग्ध है। कई कैमरे काम नहीं कर रहे हैं, और जहाँ लगे हैं, वहाँ भी निगरानी ठीक से नहीं हो रही। इसके अलावा यह बात भी सामने आई है कि 20 करोड़ रुपये का फंड उपलब्ध होने के बावजूद अब तक उसका पूरा उपयोग नहीं किया गया है।
कानूनी उलझनें और मकान मालिकों की लापरवाही
मनपा अधिकारियों के अनुसार, कई बार इमारतें इतनी पुरानी होती हैं कि उनके कागज़ात भी अधूरे होते हैं। इस कारण से मकान मालिक जिम्मेदारी लेने से बचते हैं और मरम्मत का बोझ प्रशासन पर आ जाता है। साथ ही, कई निवासी मजबूरी में उन इमारतों में रह रहे हैं, क्योंकि उनके पास रहने का कोई और विकल्प नहीं है।
समाधान क्या है? क्या करे सरकार?
- पुरानी इमारतों की जगह पुनर्विकास की योजनाएं तेज़ हों।
- मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच समझौता प्रक्रिया आसान की जाए।
- सरकार द्वारा किराया सहायता (Rent Support) दी जाए ताकि गरीब परिवार अस्थाई रूप से दूसरी जगह रह सकें।
- नियमित स्ट्रक्चरल ऑडिट अनिवार्य किया जाए।
निष्कर्ष: मानसून से पहले उठाने होंगे ठोस कदम
हर साल मानसून से पहले जर्जर इमारतों की सूची बनाना एक औपचारिक प्रक्रिया बन चुकी है। लेकिन असली ज़रूरत है प्रभावी और समयबद्ध कार्रवाई की, जिससे निर्दोष नागरिकों की जानें न जाएँ। प्रशासन, नागरिक और सरकार – तीनों को मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान निकालना होगा।