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Manipur Violence: मणिपुर में हिंसा का दौर जारी : नेशनल पीपुल्स पार्टी ने भाजपा सरकार से वापस लिया समर्थन,कर्फ्यू जारी, इंटरनेट बंद

मणिपुर में हिंसा भड़की हुई है। कई लोगों की मौत हुई है और कई नेताओं के घरों में तोड़फोड़ हुई है। सरकार ने कई जिलों में कर्फ्यू लगा दिया है और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं। नेशनल पीपुल्स पार्टी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। कांग्रेस नेता इस्तीफे को तैयार हैं।

Manipur Violence : मणिपुर में हिंसा का दौर जारी है और हालात दिन ब दिन बदतर होते जा रहे हैं। राज्य में अशांति फैली हुई है। मई 2023 में शुरू हुए जातीय संघर्षों में अब तक 220 से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है। हाल ही में जिरीबाम जिले में छह शव मिलने के बाद हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए। इससे स्थिति और भी खराब हो गई। प्रदर्शनकारियों ने तीन मंत्रियों और 6 विधायकों के घरों में तोड़फोड़ की। इनमें मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के दामाद और बीजेपी विधायक आरके इमो का घर भी शामिल था। गुस्साई भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षा बलों को आंसू गैस के गोले दागने पड़े, लेकिन तनाव अभी तक बना हुआ है। अधिकारियों ने इंफाल घाटी के कई जिलों में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया है और भड़काऊ सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया है। राजधानी इंफाल में भी हिंसा के कारण कई सड़कों पर मलबा बिखरा पड़ा है।

 

नेशनल पीपुल्स पार्टी(NPP) ने भाजपा नीत गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लिया

 

शांति बहाल करने में सरकार की विफलता पर बढ़ती आलोचना के बीच रविवार को नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) ने बीजेपी नीत गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इससे पहले कुकी पीपुल्स अलायंस (KPA) ने भी इसी साल की शुरुआत में राज्य में बिगड़ती जातीय हिंसा के मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। मणिपुर कांग्रेस अध्यक्ष कीशम मेघचंद्र ने भी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच कहा कि अगर मणिपुर के लोग शांति चाहते हैं और इसके लिए नया जनादेश लाना चाहते हैं, तो मैं कांग्रेस के सभी विधायकों के साथ विधायक पद से इस्तीफ़ा देने को तैयार हूं। उधर, सेना और असम राइफल्स के जवान अस्थिर इलाकों में गश्त कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी नीत सरकार पर अशांति को शांत करने और राज्य में स्थिरता बहाल करने का दबाव बढ़ता जा रहा है।

60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में सात विधायकों वाली NPP ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर अपने फैसले की जानकारी दी। पार्टी ने कहा कि हमें लगता है कि बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार इस संकट को सुलझाने और सामान्य स्थिति बहाल करने में पूरी तरह विफल रही है। हालांकि बीजेपी के पास 32 विधायकों के साथ बहुमत बरकरार है और उसे पांच नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) विधायकों और छह जनता दल (यूनाइटेड) सदस्यों का भी समर्थन प्राप्त है।

 

हिंसक भीड़ ने विधायकों के घरों को लगाई आग

 

हाल ही में जिरीबाम ज़िले में संदिग्ध उग्रवादियों की ओर से तीन महिलाओं और तीन बच्चों की हत्या के बाद नए सिरे से अशांति फैल गई। भीड़ ने तीन बीजेपी विधायकों और एक कांग्रेस विधायक के घरों को भी आग के हवाले कर दिया। थोउबल और इंफाल ईस्ट जैसे जिलों में लोक निर्माण विभाग के मंत्री गोविंदास कोंथौजम और विधायक वाई. राधेश्याम और पोनम ब्रोजेन की संपत्तियों को निशाना बनाया गया। बीजेपी विधायक कोंगखम रॉबिंद्रो और मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के पैतृक आवासों पर भी हमले हुए। हालांकि किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है।

विपक्ष ने फिर उठाई आवाज

 

मणिपुर कांग्रेस अध्यक्ष और विधायक कीशम मेघचंद्र ने कहा है कि अगर इससे राज्य में शांति बहाल करने में मदद मिलती है तो वह कांग्रेस के सभी विधायकों के साथ इस्तीफ़ा देने को तैयार हैं। कीशम मेघचंद्र ने सोशल मीडिया के जरिये कहा कि अगर मणिपुर के लोग शांति चाहते हैं और इसके लिए नया जनादेश लाना चाहते हैं तो मैं कांग्रेस के सभी विधायकों के साथ विधायक पद से इस्तीफ़ा देने को तैयार हूं। उनका यह बयान मौजूदा प्रशासन और संकट से निपटने के उसके तरीके को लेकर बढ़ते असंतोष को दर्शाता है।

सियासी आरोप-प्रत्यारोप

 

झारखंड मुक्ति मोर्चा की नेत्री कल्पना सोरेन ने बीजेपी नेताओं पर निष्क्रियता का आरोप लगाया है। झारखंड में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता दूसरे राज्यों में घूम रहे हैं, लेकिन आदिवासी महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए उनके पास मणिपुर जाने का समय नहीं है। मणिपुर में बीजेपी नीत सरकार को संकट से निपटने के तरीके को लेकर लगातार आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। कई बार सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने और कर्फ्यू लगाने के बावजूद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। इससे पूर्वोत्तर राज्य लंबे समय से अशांति की गिरफ्त में है।

 

क्या है संघर्ष की जड़…..यह अशांति मेइती समुदाय की ओर से अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मांग से उपजी है। इसके कारण पहाड़ी जिलों में आदिवासी समूहों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था। मई 2023 में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद हिंसा भड़क उठी और तब से हज़ारों लोग विस्थापित हो चुके हैं।

 

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