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Dadar Kabutar Khana: परंपरा, पक्षीप्रेम और स्वास्थ्य संकट के बीच मुंबई में मचा बवाल

Dadar Kabutar Khana: मुंबई का ऐतिहासिक दादर कबूतरखाना कोर्ट के आदेश पर बंद कर दिया गया है। इसके पीछे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बताया गया है, जिससे धार्मिक संगठनों और नागरिकों में भारी आक्रोश है।

मुंबई का ऐतिहासिक कबूतरखाना बंद: कबूतर भूखे, समाज आक्रोशित

मुंबई,4अगस्त: मुंबई के दादर स्थित प्रतिष्ठित कबूतरखाना को बीएमसी ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद अस्थायी रूप से सील कर दिया है। यह स्थान 1933 में स्थापित किया गया था और जैन समाज सहित हजारों पक्षीप्रेमियों के लिए धार्मिक आस्था, जीवदया और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक रहा है। दशकों से यहां रोज़ाना हज़ारों कबूतरों को दाना खिलाया जाता था। लेकिन अब यह परंपरा टूट गई है। बीएमसी ने 2 अगस्त 2025 की रात को ताड़पत्री और बांस की संरचना लगाकर पूरे परिसर को सील कर दिया, साथ ही बिजली आपूर्ति काट दी और सुरक्षा निगरानी भी बढ़ा दी। परिणामस्वरूप, अब सैकड़ों कबूतर स्टेशन से लेकर सड़कों तक 300 मीटर के इलाके में भटक रहे हैं, जिससे ट्रैफिक बाधित हो रहा है और दुर्घटना का खतरा भी बढ़ गया है। पक्षीप्रेमियों और नागरिकों ने सड़क पर उतर कर कबूतरों को हटाने का प्रयास किया ताकि उन्हें कुचला न जाए।

क्यों बंद किया गया कबूतरखाना: कोर्ट का आदेश और स्वास्थ्य का हवाला

दादर कबूतरखाना केवल धार्मिक या भावनात्मक स्थल नहीं था, बल्कि अब यह सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का केंद्र माना जा रहा है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 31 जुलाई 2025 को दिए गए एक ऐतिहासिक आदेश में मुंबई के सभी 51 कबूतरखानों को तत्काल प्रभाव से बंद करने को कहा। अदालत का तर्क था कि कबूतरों की बीट, पंख और घोंसलों से उत्पन्न कचरा हवा में मिलकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर रहा है। कोर्ट को प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट्स में स्पष्ट किया गया कि इससे “पिजन लंग” नामक एक खतरनाक फेफड़ों की बीमारी फैल रही है, जो विशेषकर बुजुर्गों, बच्चों और अस्थमा रोगियों के लिए जानलेवा हो सकती है। इस संदर्भ में केईएम अस्पताल और स्वास्थ्य विभाग ने भी समर्थन में रिपोर्ट दी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति अब इन बंद स्थानों पर दाना डालते पाया गया, तो उसके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराएं 223, 270 और 271 के तहत एफआईआर दर्ज की जाएगी। माहिम में इस तरह की पहली एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है।

धार्मिक विरोध और वैकल्पिक समाधान की मांग

जैसे ही कबूतरखाना बंद हुआ, जैन समाज और कई धार्मिक संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया। उनका कहना है कि कबूतरों को दाना डालना केवल परंपरा नहीं बल्कि धर्म और करुणा का कर्तव्य है, जिसे रोकना संविधान के अनुच्छेद 51(A)(g) का उल्लंघन है। जैन साधु-संतों ने चेतावनी दी है कि यदि 10 अगस्त तक कबूतरों को दाना डालने की अनुमति नहीं मिली तो वे आमरण अनशन पर बैठेंगे। उनका आरोप है कि हजारों कबूतर अब भूख से मर रहे हैं, जो एक मानवीय त्रासदी है।

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि दादर कबूतरखाना एक ग्रेड-II हेरिटेज संरचना है, जिसे न तोड़ा जा सकता है और न ही नजरअंदाज किया जा सकता है। इस बीच, मुंबई के संरक्षक मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने बीएमसी से आग्रह किया है कि दाना डालने के लिए वैकल्पिक स्थल जैसे बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स (BKC), आरे कॉलोनी और संजय गांधी नेशनल पार्क (SGNP) को चिन्हित किया जाए, जहां स्वास्थ्य और स्वच्छता का भी ध्यान रखा जा सके। फिलहाल बीएमसी इस पर विचार कर रही है, लेकिन अभी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।

दादर कबूतरखाना बंद होने से एक ओर जहां स्वास्थ्य सुरक्षा का मसला उठा है, वहीं दूसरी ओर धार्मिक स्वतंत्रता और मानवीय मूल्यों की अनदेखी का आरोप लग रहा है। कबूतरों की भटकती स्थिति और धार्मिक संगठनों की चेतावनियों ने इसे एक सामाजिक-प्रशासनिक संघर्ष में बदल दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि मुंबई इस संवेदनशील मुद्दे का कैसे समाधान निकालती है – संतुलन के साथ या टकराव के साथ।

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