Is Vasai Virar Clean City ? : VVCMC घनकचरा विभाग के अधिकारियों का ‘भ्रष्टाचार’ शासन प्रदत्त ‘शांत हिंसा’ !
Is Vasai Virar Clean City ? : कुव्यवस्था एवं कुप्रबंधन, वसई विरार (Vasai Virar) शहर महानगरपालिका के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार “सत्ता और लालच” का एक परिणाम है और यही कारण है कि तमाम नियमों एवं कानूनों के बावजूद, भ्रष्टाचार गुप्त, अवसरवादी और शक्तिशाली हो चुका है. यह एक प्रकार की शासनप्रदत्त ‘शांत हिंसा’ है जिसमे लोग हर दिन मरते रहेंगे ..
ज्वलंत उदाहरण है नालासोपारा पूर्व का स्लम एरिया जिसमें संतोष भवन, गावरायी पाढा, श्रीराम नगर, वाकनपाढ़ा, धानिवबाग, हवाई पाढ़ा इत्यादि कई स्लम इलाके हैं जहां पर महानगरपालिका की कचरा उठाने वाली गाड़ी हफ्ते में बमुश्किल एक दिन जाती है बाकी दिन लोग अपने घरों में कचरे की पोटली रखते हैं या फिर सड़कों पर यहां-वहां फेंकने को मजबूर होते हैं.
हमारा समाज इन्हें गरीब वर्ग मानता है क्योंकि ये कम आय वाले लोग हैं और शहर के स्लम इलाकों में रहकर मेहनत-मजदूरी करके अपना जीवन-यापन करते हैं। गरीब हैं तो क्या हुआ ? ये भी तो महानगरपालिका के करदाता हैं! क्या इन्हें स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी,स्वच्छ वातावरण और अच्छी जिंदगी जीने का अधिकार नहीं हैं ? आखिर इनके साथ मनपा स्वच्छता विभाग के ठेकेदारों द्वारा भेदभाव क्यों किया जा रहा है ?
वसई विरार शहर महानगरपालिका क्षेत्र में प्रतिदिन लगभग 650-750 मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता है। बिना ट्रीटमेंट किये ही वसई विरार शहर महानगरपालिका द्वारा इस कचरे को डंपिंग ग्राउंड पर डाल दिया जाता है. इसके अलावा वसई-विरार नगर निगम ने इस कचरे से निकलने वाली भारी वस्तुओं के निपटारे के लिए कोई ठोस उपाय भी नहीं करती है। इससे बहुत आसानी से समझा जा सकता है कि कैसे “नगर विकास विभाग की शासकीय व्यवस्था” करदाता के पैसे का दुरूपयोग वसई विरार शहर महानगरपालिका जैसी ग़ैरजिम्मेदार और कुप्रबंधित शहरी स्थानीय निकाय को बचाने के लिए कर रही है।
कौन भूल सकता है साल 2021 की ये घटना जिसमे घनकचरा व्यवस्थापन/ठोस कचरा प्रबंधन में वसई विरार शहर महानगरपालिका की विफलता के कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) ने वसई विरार मनपा पर 80 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था और इस आदेश के अनुसार वसई विरार मनपा को हर महीने 20 लाख रुपये का जुर्माना देना था। निर्धारित समयसीमा 30 दिसंबर 2020 तक जुर्माना नहीं भरने के कारण वसई विरार मनपा को हर महीने 20 लाख रुपये का अतिरिक्त जुर्माना भी देना पड़ा.
स्वच्छ भारत अभियान यहां मज़ाक :
घनकचरा व्यवस्थापन के मुद्दे पर इतनी छीछालेदर होने के बाद भी वसई विरार शहर महानगरपालिका की भ्रष्टाचार और लापरवाह व्यवस्था स्वच्छ भारत अभियान के उद्देश्य की खुलेआम धज्जियाँ उड़ा रही है. स्वच्छ भारत अभियान का मतलब केवल आसपास की सफाई करना ही नहीं है अपितु नागरिकों की सहभागिता से अधिक-से अधिक पेड़ लगाना, कचरा मुक्त वातावरण बनाना, शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराकर एक स्वच्छ भारत का निर्माण करना है। स्वच्छ भारत/घनकचरा व्यवस्थापन के नाम पर वसई विरार के नागरिकों से भारी-भरकम कर वसूलने के बाद भी अस्वच्छ वसई विरार की तस्वीरें यहाँ के नागरिकों के लिए व्यवस्थाप्रदत्त उनकी नारकीय जिंदगी जीने की थोपी हुई मज़बूरी की वजह बन जाती है। महीने का लगभग 15 करोड़ का बजट है महानगरपालिका के घनकचरा व्यवस्थापन विभाग का लेकिन तस्वीरें बताती हैं कि आधा शहर या यूँ कहें कि गरीब करदाता के क्षेत्रों में इन 15 करोड़ का चौथाई हिस्सा भी नहीं पहुंचता।
यहां हफ्ते भर नहीं उठाया जाता कचरा !
नालासोपारा (Nalasopara) के पूर्वी इलाकों में रह रहे लोगों का हाल बेहाल है। बीते एक हफ्ते से लोग अपने अपने घरों में कचरा जमा कर महानगर पालिका के स्वच्छता विभाग की गाड़ी की राह देख रहे हैं लेकिन लापरवाह अधिकारी और भ्रष्ट ठेकेदार कुंभकर्णी नींद में सो रहे है और टैक्स देने वाली जनता घर में जमा कचरे को लेकर अपनी किस्मत पर आंसू बहा रही है। स्वच्छ वसई विरार का दावा करने वाली वसई विरार महानगरपालिका द्वारा खुद स्वच्छ भारत अभियान की धज़्ज़ियाँ उड़ाए जा रही है। सड़कों, गलियों चौक चौराहों पर हफ्तों से कचरे के ढेर पड़े हैं। ये तस्वीरें भले ही नालासोपारा पूर्व के कारगिल नगर की है लेकिन ऐसी ही तस्वीर शहर के झोपड़पट्टी इलाकों जिनमें संतोष भवन, गावरायी पाढा, श्री राम नगर, वाकनपाढ़ा, धानिवबाग इत्यादि में सड़कों पर कचरे का ढेर हफ्तों से पड़ा रहता है जिससे लोगों में संक्रामक बीमारियां फैलाने का खतरा बना रहता है।
नन्हे बच्चों के साथ-साथ स्कूली छात्र भी इन्ही कचरों के ढेर से होकर गुजरने को मजबूर हैं, आस-पास छोटे-मोटे व्यापार करने वाले लोग और अगल-बगल में दुकान चलाने वाले दुकानदार, कचरे के ढेर की सड़ांध बदबू से त्रस्त हैं, इसके लिए इन्हें दिन भर नाक ढक कर दुकानदारी करनी होती है। ऐसे में लोग खुले मुंह से महानगरपालिका अधिकारियों पर सवाल खड़े कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि कचरा उठाने वाली गाड़ियां हफ्ते हफ्ते भर नहीं आतीं ऐसे में लोगों के सब्र का बांध टूट जाता है और लोग घर में पड़े कचरे को नाले इत्यादि में फेंकने को मजबूर हो जाते हैं.
इस परिस्थिति को देखकर यह सवाल खड़ा होता है कि जनता के हक का महीने का लगभग 15 करोड़ रुपया स्वच्छता के नाम पर खर्च करने वाली महानगरपालिका आखिर ये पैसे कहां खर्च कर रही है? जब शहर का आधा हिस्सा कचरे के ढेर के नीचे दबा पड़ा है, महानगरपालिका के घनकाचरा विभाग के अधिकारी इतने बड़े फंड को कहां खर्च कर रहे हैं?
ऐसे गंभीर मामले पर वसई विरार शहर महानगरपालिका के घनकाचरा विभाग पर उंगलियां उठनी शुरू हो गई हैं, मासूम जनता इस विश्वास पर टैक्स देती रहती है कि मनपा उनके लिए आवश्यक जीवनोपयोगी प्रक्रियाएं संचालित करती रहेगी लेकिन जिस तरह से स्लम इलाकों के साथ भेदभाव किया जा रहा है ये अपने आप में चिंताजनक बात हैं। वसई विरार शहर महानगरपालिका के घनकाचरा विभाग के अधिकारियों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने और ग़ैरजिम्मेदारी इतनी मज़बूरी बन चुकी है कि इनको गंदगी से बदहाल और इससे रोज़ाना बीमार हो रहे हज़ारों जिंदगियाँ इनको दिखाई ही नहीं देती?
कुव्यवस्था एवं कुप्रबंधन, वसई विरार शहर महानगरपालिका के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार “सत्ता और लालच” का एक परिणाम है। और यही कारण है कि तमाम नियमों एवं कानूनों के बावजूद, भ्रष्टाचार गुप्त, अवसरवादी और शक्तिशाली हो चुका है. यह एक प्रकार की शासनप्रदत्त ‘शांत हिंसा’ है जिसमे लोग हर दिन मरते रहेंगे क्योंकि भ्रष्टाचार केवल एक वित्तीय मुद्दा नहीं है; भ्रष्टाचार अपनी प्रथाओं के अनुरूप सामाजिक व्यवस्था बनाता है और वसई विरार शहर महानगरपालिका के तमाम अधिकारी- कर्मचारी इसी स्वनिर्मित व्यवस्था रूपी मखमली चादर से अपनी आंखे ढक रखी है?
देखने वाली बात होगी कि वसई विरार मनपा के अधिकारियों के ‘क्षुद्र भ्रष्टाचार’ से इन गरीब वर्ग को कब निज़ात मिलेगी और विधि द्वारा तयशुदा नागरी सुविधा कब मिलेगी?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (The National Green Tribunal) में “वाद संख्या 606/2018-Compliance of Municipal Solid Waste Management Rules, 2016 (State of Maharashtra)” में महाराष्ट्र सरकार द्वारा घनकचरा व्यवस्थापन को लेकर हलफ़नामा दायर किया था और जिसका राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने अवलोकन कर बताया था की भारत की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला राज्य महाराष्ट्र में मीठी, गोदावरी, भीमा, कृष्णा, उल्हास, तापी, कुंडलिका, पंचगंगा, मुला-मुथा, पेल्हार, पेंगांगा और वैतरणा सहित देश में प्रदूषित नदी खंडों की संख्या सबसे अधिक है। 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषित क्षेत्रों में शहरों और कस्बों की संख्या भी सबसे अधिक है। रिपोर्टों के अनुसार, महाराष्ट्र के 30 से अधिक जिलों से एकत्र किए गए पानी के नमूनों में दूषित पदार्थ पाए गए।
- वर्तमान में, मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई में केवल एक-एक जल उपचार संयंत्र है। आगे बताया गया कि मुंबई राज्य का सबसे जहरीला शहर और दुनिया का 71वां सबसे प्रदूषित शहर है। राज्य की राजधानी बीजिंग से भी अधिक प्रदूषित थी जो कुछ साल पहले दुनियाँ का सबसे प्रदूषित शहर हुआ करता था।.
- आंकड़ों से पता चला कि महाराष्ट्र के तीन जिलों – बदलापुर, पुणे और उल्हासनगर में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर खतरनाक रूप से अधिक था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, NO2 एक जहरीली गैस है जो श्वसन संबंधी बीमारियों का कारण बन सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के 17 अत्यधिक प्रदूषित शहर की समस्या से निपटने के लिए कोई कार्य योजना तैयार नहीं हैं.
- इसके अलावा, 2013 और 2017 के बीच देश में अवैध खनन के सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए। महाराष्ट्र में टियर I और II शहरों के किनारे जहाँ निर्माण कार्य चल रहा है,वहां अवैध खनन बेरोकटोक चल रहे हैं। पर्यावरणीय प्रभाव में वन क्षेत्र, निवास स्थान और क्षेत्र की जैव विविधता का नुकसान, मिट्टी का क्षरण, भूजल प्रदूषण और भूवैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए पहाड़ी क्षेत्रों का स्थायी विनाश शामिल है। महाराष्ट्र में शहर के बाहरी इलाकों में रेत की बिक्री हो रही है, जहां ड्रेजिंग का काम जोरों पर है। राज्य में अवैध रेत खनन की पहचान करने के लिए कोई नीति नहीं है।
- रिपोर्टों के अनुसार, अमरावती, कल्याण-डोंबिवली और कोल्हापुर नगर निगम के पास नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (एमएसडब्ल्यू) के लिए कोई प्रसंस्करण सुविधा नहीं थी। ठाणे नगर पालिका द्वारा उत्पन्न एमएसडब्ल्यू का केवल तीन प्रतिशत संसाधित किया जा रहा था। इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि महाराष्ट्र प्रति दिन 26,820 टन से अधिक ठोस कचरा उत्पन्न करता है, जो किसी भी अन्य राज्य की तुलना में अधिक है।
रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई से लगभग 90 किलोमीटर दूर मनोर ग्राम पंचायत द्वारा एक नदी तट पर प्रतिदिन टनों कचरा खुलेआम फेंका और जलाया जा रहा है, जिससे वैतरणा नदी प्रदूषित हो रही है। औरंगाबाद शहर को दूसरे स्थान पर रखा गया है। पिछले एक साल से खराब कचरा प्रबंधन के लिए स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 के तहत राज्य स्तरीय रैंकिंग में सबसे नीचे।
उपरोक्त वाद की सुनवाई के दौरान घनकचरा व्यवस्थापन के लिए MoHUA ने सुझाव के मद्देनज़र राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया था कि निम्नलिखित मानदंडों पर शुरुआत में 1 लाख और उससे अधिक की आबादी वाले 500 Urban Local Bodies (ULBs) के लिए प्रदर्शन(Performance) ऑडिट आयोजित होना चाहिए लेकिन कितने Urban Local Bodies (ULBs) में प्रदर्शन ऑडिट हुए ये अब तक एक अनसुलझा प्रश्न है या इसे यूँ कहें कि ये सौदामिनि सा रहस्य है जो गिर गया हम ही पर।
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