मुंबई के जेजे हॉस्पिटल के पीआईसीयू में 24 घंटे के भीतर तीन मासूमों की मौत से हड़कंप मच गया है। इनमें एक बच्चे की मौत डेंगू से हुई है, जो इस मानसून की पहली डेंगू से जान जाने की घटना है। यह सब एक ऐसे समय में हुआ है जब अस्पताल का बाल विभाग पहले से ही आंतरिक विवादों से जूझ रहा है।
मुंबई, 5 अगस्त: मुंबई के प्रसिद्ध जेजे हॉस्पिटल से आई इस खबर ने शहर के चिकित्सा जगत में चिंता बढ़ा दी है। बीते 24 घंटे में अस्पताल के पीआईसीयू (Paediatric Intensive Care Unit) में तीन बच्चों की मौत हो गई है, जबकि आमतौर पर यहां एक दिन में अधिकतम एक ही मौत होती है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मृत बच्चों में से एक, सात साल का मासूम, डेंगू और दूसरी गंभीर जटिलताओं का शिकार हुआ। यह इस वर्ष की पहली डेंगू से मौत मानी जा रही है, जिससे अब बीएमसी और राज्य स्वास्थ्य विभाग भी सतर्क हो गया है।
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डेंगू से पहली मौत, बाकी दो बच्चों की हालत भी थी गंभीर
बाकी दो बच्चों में एक 11 वर्षीय बच्चे की मौत सेप्टिक शॉक और अन्य जटिलताओं से हुई, जबकि दूसरे 11 वर्षीय बच्चे की जान कार्डियो-रेस्पिरेटरी अरेस्ट और टीबी की वजह से गई। अस्पताल सूत्रों के अनुसार, तीनों बच्चे गंभीर स्थिति में थे और वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। उन्हें पहले अन्य अस्पतालों से जेजे हॉस्पिटल रेफर किया गया था। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि इलाज में कोई लापरवाही नहीं बरती गई, लेकिन लगातार तीन मौतों ने पीआईसीयू की कार्यप्रणाली पर सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं।
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विभागीय विवाद ने बढ़ाई चिंता, इलाज पर पड़ा असर?
यह घटना ऐसे समय में सामने आई है जब बाल विभाग में पहले से ही तनाव चल रहा है। 16 जुलाई को एक महिला रेजिडेंट डॉक्टर द्वारा आत्महत्या की कोशिश के बाद विभाग के रेजिडेंट डॉक्टर्स और विभाग प्रमुख के बीच विवाद गहरा गया है। रेजिडेंट डॉक्टर विरोध में हैं और विभागीय माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है। इस माहौल में बच्चों की देखभाल और उपचार की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
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डीन ने दी सफाई, बताया बच्चे थे गंभीर हालत में
जेजे हॉस्पिटल के डीन, डॉ. अजय भंडारवर ने इन तीनों मौतों की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि तीनों ही बच्चे वेंटिलेटर पर थे और बेहद गंभीर हालत में लाए गए थे। डीन ने यह भी कहा कि पीआईसीयू स्टाफ ने अपने स्तर पर पूरी कोशिश की, लेकिन बच्चों की हालत पहले से ही बेहद नाजुक थी।
हालांकि, डेंगू से हुई पहली मौत और विभागीय तनाव के बीच हुई यह घटनाएं यह सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि कहीं प्रशासनिक अस्थिरता मरीजों की जान पर भारी तो नहीं पड़ रही।