मुंबई। महाराष्ट्र में स्टेट इलेक्शन कमीशन (SEC) द्वारा कुछ नगर परिषद और नगर पंचायत के चुनावों को टालने के फैसले, और बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच द्वारा 21 दिसंबर को सभी चुनावी निकायों की मतगणना एक ही दिन कराने के आदेश ने सियासी तापमान बढ़ा दिया है। सत्ताधारी और विपक्ष—दोनों ने SEC और न्यायालय के इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताई है।
CM फडणवीस की नाराज़गी: “ऐसा पहली बार देखा, यह सिस्टम की नाकामी है”
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि वे न्यायपालिका और इलेक्शन कमीशन की ऑटोनॉमी का सम्मान करते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया से वे पूरी तरह सहमत नहीं हैं।
उन्होंने कहा—
“पिछले 25–30 वर्षों में कभी नहीं देखा कि घोषित चुनाव टाल दिए जाएँ और नतीजे आगे बढ़ा दिए जाएँ। यह तरीका सही नहीं लगता। यह सिस्टम की नाकामी है।”
फडणवीस ने SEC पर कानून का गलत मतलब निकालने का भी आरोप लगाया।
कांग्रेस का हमला: “चुनाव बच्चों का खेल बन गए हैं”
कांग्रेस लेजिस्लेचर पार्टी के नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा—
“यह चुनाव रोकने का तरीका है। सरकार दिखाना चाहती है कि उसने OBC को 27% आरक्षण दिया है, जबकि असलियत में चुनाव में देरी करके लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और SEC मिलकर नतीजों में हेरफेर का रास्ता बना रहे हैं।
उद्धव ठाकरे का तंज: “चुनाव आयोग और कोर्ट पर टिप्पणी न करना बेहतर”
शिवसेना-UBT प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पूरे विवाद पर तंज कसते हुए कहा—
“चुनाव आयोग और कोर्ट के बारे में न बोलना ही बेहतर है।”
राज ठाकरे की प्रतिक्रिया: “देश में मनमानी चल रही है”
MNS प्रमुख राज ठाकरे ने कहा—
“देश में मनमानी चल रही है। यह पूरा मामला समझ से बाहर है।”
राज्य मंत्री बावनकुले का आरोप: “SEC ने बहुत बड़ी गड़बड़ की”
राज्य के रेवेन्यू मिनिस्टर चंद्रशेखर बावनकुले ने SEC पर सीधा हमला करते हुए कहा—
“SEC ने नियमों का गलत मतलब निकाला है। सभी मतगणना टालना नागरिकों को बंधक बनाने जैसा है।”
रोहित पवार का हमला: “BJP और इलेक्शन कमीशन बराबर जिम्मेदार”
NCP-SP विधायक रोहित पवार ने X पर लिखा—
“हाईकोर्ट का फैसला इलेक्शन कमीशन के घटिया काम पर मुहर है। आज राज्य में जो अफरा-तफरी है, उसके लिए BJP और इलेक्शन कमीशन जिम्मेदार हैं।”
SEC और बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णयों ने महाराष्ट्र की राजनीति में गहरी हलचल पैदा कर दी है।
सभी दलों की प्रतिक्रियाएँ इस बात की ओर इशारा करती हैं कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और प्रशासनिक निर्णयों पर अब बड़े सवाल खड़े हो चुके हैं।
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