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Palghar Water Crisis : सावधान! पालघर जिले में जलापूर्ति संकट की आशंका,बांधों में सिर्फ 35 फीसदी पानी शेष

Palghar Water Crisis : सावधान! पालघर जिले में जलापूर्ति संकट की आशंका,बांधों में सिर्फ 35 फीसदी पानी शेष
Palghar Water Crisis : सावधान! पालघर जिले में जलापूर्ति संकट की आशंका,बांधों में सिर्फ 35 फीसदी पानी शेष

Palghar Water Crisis : आदिवासी बहुल पालघर जिले के बांधों में पानी का स्तर दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है। सक्षम प्राधिकारों से पता चला है कि खपत और वाष्पीकरण के कारण पिछले 12 दिनों में जिले में 11.69 प्रतिशत पानी नष्ट हो गया है क्योंकि जल भंडारण हर दिन दस लाख क्यूबिक मीटर कम हो रहा है। जिले में अब तक बांध में 65 फीसदी से ज्यादा पानी कम हो चुका है. चूंकि फरवरी के अंत से जिले में तापमान बढ़ रहा है,इसलिए मौजूदा 35 फीसदी जल भंडार से आपने वाले तीन महीने तक पानी की आपूर्ति करना मुश्किल होगा.

8 अप्रैल को की गई जिले के बांधों एवं बांधों की समीक्षा में धामनी बांध में 47.23 प्रतिशत, कवडा उन्नयी बांध में 79.42 प्रतिशत, वांद्रे मध्यम प्रकल्प बांध में 46.75 प्रतिशत जल संग्रहण है। वहीं, पालघर तालुक में मनोर लघु सिंचाई में 61.81 प्रतिशत,केळवा लघु सिंचाई में 48.58 प्रतिशत, देवखोप लघु सिंचाई में 27.12 प्रतिशत, डहाणू तालुक में रायतळे लघु सिंचाई में 15.89 प्रतिशत, विक्रमगड तालुक में खंड लघु सिंचाई में 46.27 प्रतिशत और मोहखुर्द लघु सिंचाई में 53.57 प्रतिशत जल संग्रहण है। इस इन बांधो में जुलाई के दूसरे सप्ताह तक पानी की आपूर्ति करना जरूरी है.

जिले में 22 अप्रैल को हुए सर्वे में धामणी बांध में 35.54 प्रतिशत,कवडा बांध में 41.77 प्रतिशत,वांन्द्री बांध में 41.77 प्रतिशत, मनोर बांध में 34.49 प्रतिशत, केळवे बांध में 45.53 प्रतिशत, रायतळे बांध में 28.95 प्रतिशत, खांड बांध में 46.98 प्रतिशत, मोहखुर्द बांध में 26.28 प्रतिशत मात्र प्रतिशत पानी बचा है। इससे मई, जून, जुलाई के अंत तक बांध में पानी का भंडारण अपर्याप्त होने का अनुमान है.

प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से जून माह के तीसरे सप्ताह के आसपास हर जगह बारिश शुरू हो जाती है। यदि अधिक वर्षा हो तो जुलाई के लगभग तीसरे सप्ताह तक जरूरतों के पूरा करने लायक बांधों का स्तर पर पहुँच पाता है। और तभी साल भर के लिए पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित हो पाती है.अगर उमीदों के अनुसार बारिश नहीं हुई तो समय रहते इस पर गंभीरता से विचार करना और कोई व्यवहार्य योजना बनाना इसलिए जरूरी है कि मौसम की तपिश बढ़ते ही शहरी क्षेत्रों में लोगों के लिए पीने के पानी की आवश्यकता अधिक होती है।

ऐसे में प्रश्न यह है कि क्या महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण और जल जीवन मिशन और सिंचाई विभाग हर दिन युद्ध स्तर पर नागरिकों को पानी उपलब्ध करा सकते हैं और क्या पानी की बर्बादी को रोकने के लिए कोई उपाय किया जा सकता है?

 

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