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NH 48: रक्षाबंधन पर ट्रैफिक जाम का ग्रहण: ‘लाडली बहनों’ का पीड़ादायक सफ़र

हाइवे पर फंसी महिलाएं रक्षाबंधन के दिन ट्रैफिक जाम
हाइवे पर फंसी महिलाएं रक्षाबंधन के दिन ट्रैफिक जाम

मुंबई-अहमदाबाद हाईवे (NH 48) पर जारी निर्माण कार्य और ट्रैफिक डायवर्जन ने रक्षाबंधन के दिन को बहनों के लिए मुश्किल भरा बना दिया। सुबह 10 से दोपहर 1:30 तक का शुभ मुहूर्त ट्रैफिक में उलझ गया, और कई बहनें अब भी शाम तक पहुंचने की दुआ कर रही हैं।

मुंबई, 9 अगस्त: मुंबई-अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-48) इन दिनों केवल एक सड़क नहीं, बल्कि लोगों के धैर्य और सहनशीलता की गंभीर परीक्षा बन चुका है। महीनों से चल रहे भारी ट्रैफिक जाम ने आम जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। रक्षाबंधन जैसे भावनात्मक पर्व पर, जब परिवार एकजुट होने की उम्मीद में यात्रा पर निकले थे, तब यह स्थिति और भी पीड़ादायक बन गई। इस बार राखी के धागों में प्रेम और स्नेह के साथ-साथ प्रशासनिक लापरवाही और खराब योजना की कसक भी जुड़ गई।

मुंबई को अहमदाबाद सहित सात राज्यों से जोड़ने वाला यह हाइवे देश की आर्थिक धड़कन कहा जाता है। लेकिन बीते महीनों में इस हाइवे की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है। कई हिस्सों में सड़क धंसी हुई है, निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है, ट्रैफिक प्रबंधन असंतुलित है और इंजीनियरिंग स्तर पर लापरवाही स्पष्ट दिखाई देती है।

  • NHAI के 600 करोड़ के वाइट-टॉपिंग प्रोजेक्ट को लेकर लोग सवाल उठा रहे हैं—

  • गुणवत्ता की जांच क्यों नहीं हुई?
  • काम की गति इतनी धीमी क्यों?
  • सुरक्षा और इंजीनियरिंग मानकों की अनदेखी क्यों?

रक्षाबंधन पर ट्रैफिक का जाम और बहनों की उम्मीदें: जब सड़कें भावना से भारी हो गईं

  • त्योहार के बीच ‘डायवर्शन’ का फैसला: संवेदनहीन योजना

6 अगस्त को MBVV पुलिस आयुक्तालय द्वारा ट्रैफिक डायवर्शन की अधिसूचना जारी की गई, जिससे मरम्मत कार्य के लिए मार्गों को बदला गया। यह फैसला उस सप्ताह लिया गया जब रक्षाबंधन (9 अगस्त) जैसे त्योहार के साथ-साथ लगातार छुट्टियां (8 से 10 अगस्त) चल रही थीं। प्रशासन ने शायद मान लिया था कि कम यातायात होगा, लेकिन रक्षाबंधन की भावनात्मक और पारिवारिक महत्ता को नज़रअंदाज कर दिया गया। इस गलत अनुमान का नतीजा यह हुआ कि बड़ी संख्या में बहनें और परिवार 9 अगस्त को अपने प्रियजनों के पास जाने के लिए निकले, जिससे ट्रैफिक का दबाव दोगुना हो गया। डायवर्ट किए गए रास्ते इस भार को संभाल नहीं सके और हाईवे पर भारी जाम लग गया।

 

  • ‘लाडली बहनों’ का दर्द: ट्रैफिक में फंसी राखियों की डोर

विरार से वसई, नालासोपारा से मीरा रोड, भिवंडी से ठाणे तक, हर दिशा से महिलाएं अपने भाई के घर राखी बांधने निकली थीं। कईयों ने एक दिन पहले ही सफर शुरू किया, फिर भी उन्हें जाम से राहत नहीं मिली। कई घंटों की फंसी हुई गाड़ियां, पूजा की थाली हाथों में लिए महिलाएं और एक अनिश्चितता से भरी दोपहर, रक्षाबंधन का दृश्य कुछ ऐसा ही था। एक महिला ने कहा: “भाई की कलाई खाली न रह जाए, इसलिए सुबह-सुबह निकल पड़ी थी, लेकिन चार घंटे से एक ही जगह खड़ी हूं। सरकार को त्योहार की अहमियत का अंदाजा ही नहीं।”

  • धुएं और हॉर्न में दबा उत्सव

राखी के दिन आमतौर पर घरों में हंसी-खुशी और मिठास का माहौल रहता है, लेकिन इस बार कई भाई-बहन सड़क पर धूल, धुएं और हॉर्न के बीच मिलने को मजबूर हुए। न सिर्फ व्यक्तिगत यात्राएं, बल्कि आपातकालीन सेवाएं भी इस जाम से प्रभावित हुईं। एंबुलेंसें जाम में फंस गईं, जिससे मरीजों की जान पर जोखिम मंडरा रहा था। ईंधन की खपत बढ़ गई, जिससे आर्थिक बोझ बढ़ा। ऑफिस जाने वाले कर्मचारी देर से पहुंचे, जिससे कार्यस्थल पर भी असर पड़ा।

 

  • सोशल मीडिया पर गुस्से का विस्फोट

ट्रैफिक की इस गंभीर स्थिति को देखते हुए लोगों ने सोशल मीडिया का सहारा लिया। X (पूर्व ट्विटर) और फेसबुक पर सैकड़ों पोस्ट किए गए, जिनमें सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, NHAI और स्थानीय प्रशासन से सीधे सवाल पूछे गए।

प्रमुख सवाल यह थे—

  • त्योहार के बीच मरम्मत की योजना क्यों?
  • ठेकेदारों की लापरवाही पर कार्रवाई कब?
  • 600 करोड़ के प्रोजेक्ट के बावजूद हालात ऐसे क्यों?
  • त्योहार पर लगा ‘प्रशासनिक ग्रहण’

रक्षाबंधन केवल एक धार्मिक रस्म नहीं है, यह भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक पर्व है। इस दिन भावनाओं की अहमियत होती है, समय की नहीं। लेकिन इस साल यह त्योहार सरकारी योजनाओं की कमियों में उलझकर रह गया। राखी का धागा जितना मजबूत था, उतनी ही कमजोर थी इसे समय पर भाई की कलाई तक पहुंचाने की व्यवस्था।

  • अब सवाल सीधा है—जवाब कौन देगा?

  • क्या बीजेपी सरकार जवाब देगी?
  • क्या नितिन गडकरी सामने आएंगे?
  • क्या NHAI के अधिकारी जिम्मेदारी लेंगे?
  • या फिर ठेकेदार चुपचाप फायदा उठाकर निकल जाएंगे?

लोग अब सिर्फ रास्ता नहीं, बल्कि जवाब भी ढूंढ रहे हैं। क्योंकि अगर सवाल उठते रहेंगे और चुप्पी बनी रही, तो अगला त्योहार फिर किसी और जाम में उलझ जाएगा।

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