महाराष्ट्र

कैसे क्राइम रिपोर्टर से शिवसेना के बड़े नेता बने Sanjay Raut, बालासाहेब ने दी थी नौकरी

पात्रा चॉल मामले में ईडी शिवसेना नेता Sanjay Raut पर शिकंजा कस रही है

वहीं Sanjay Raut कह रहे हैं कि वह झुकेंगे नहीं और लड़ाई जारी रहेगी। Sanjay Raut की उद्धव गुट में अहम जगह है। भाजपा पर हमला बोलने में वह पार्टी में सबसे आगे रहते हैं। शिवसेना नेता के तौर पर उनकी लोकप्रियता भी बहुत है। आखिर पत्रकारिता से करियर की शुरुआत करने वाला शख्स राजनीति में इतनी ऊंचाई पर कैसे पहुंचा। आइए जानते हैं उनके राजनीतिक सफर की कहानी।

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80 के दशक में क्राइम रिपोर्टर थे Sanjay Raut                                                                      संजय राउत का जन्म 15 अक्टूबर 1961 को हुआ था। वह सोमवंशी क्षत्रिय पठारे समुदाय से आते हैं। मुंबई के कॉलेज से बी.कॉम. करने के बाद वह पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गए। वह एक मराठी अखबार में क्राइम रिपोर्टर के तौर पर कार्य करने लगे। उनके अंडरवर्ल्ड में अच्छे सूत्र थे और क्राइम रिपोर्टर के तौर पर अच्छी पहचान थी। पत्रकारिता के दौरान ही वह राज ठाकरे के संपर्क में आए और उनकी अच्छी दोस्ती हो गई। उस समय राज ठाकरे शिवसेना में बड़े नेता थे।

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बालासाहेब ने दी नौकरी
संजय राउत क्राइम रिपोर्टर के तौर पर अच्छा काम कर रहे थे। इसी बीच शिवसेना के मराठी मुखपत्र सामना में वैकेंसी आई। वैकेंसी भी थी, कार्यकारी संपादक की। बालासाहेब ने इस पद के लिए संजय राउत का चयन किया। इसके बाद संजय राउत सामना का कार्यभार देखने लगे। वह काफी तीखे संपादकीय लिखा करते थे। बालासाहेब को उनकी लेखनी बहुत पसंद आई। इसके बाद सामना का हिंदी एडिशन भी शुरू किया। संजय राउत की इसमें बड़ी भूमिका थी। जल्दी ही बालासाहेब के विचार और संजय राउत की लेखनी का तालमेल इतना अच्छा हो गया कि वह जो कुछ लिख देते थे उसे बालासाहेब का ही विचार माना जाता था।

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राज ठाकरे से बना ली दूरी
ठाकरे परिवार में जब फूट पड़ी तो संजय राउत ने राज ठाकरे का साथ छोड़ दिया और उद्धव ठाकरे का साथ पकड़ा। मुखपत्र सामना में  भी वह राज ठाकरे पर हमला बोला करते थे। 2004 में शिवसेना ने पहली बार उन्हें राज्यसभा भेजा। इसके बाद से वह उच्च सदन में शिवसेना की आवाज के रूप में जाने जाते हैं।

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महाविकास अघाड़ी सरकार बनवाने में अहम भूमिका
शिवसेना और भाजपा को अलग करके महाविकास अघाड़ी सरकार बनवाने में भी संजय राउत की  बड़ी भूमिका मानी जाती है। चुनाव परिणाम आने के बाद सबसे पहले उन्होंने ही एनसीपी चीफ शरद पवार से मुलाकात की थी। इसके बाद ही भाजपा के सामने मुख्यमंत्री पद की शर्त रखने और फिर गठबंधन टूटने का सिलसिला शुरू हुआ।

-Youtube/MetroCitySamachar

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