Traffic Problem in Vasai Virar 2025 : वसई-विरार की सड़कों पर अतिक्रमण का ‘करोड़ों’ का खेल: जनता ट्रैफिक में फंसी, फेरीवालों की चांदी!
सरकार और नगर निगम की अनदेखी, राजनीतिक संरक्षण और भ्रष्टाचार के चलते अतिक्रमण की चपेट में पूरा शहर — कब मिलेगी जनता को राहत?

वसई-विरार की अतिक्रमण की हकीकत: ट्रैफिक (Traffic), टैक्स और त्रासदी
वसई-विरार के नागरिक शायद ही कोई ऐसा दिन देखते होंगे जब उन्हें भीषण ट्रैफिक (Traffic) जाम का सामना न करना पड़ता हो। लाखों रुपये खर्च कर खरीदी गई गाड़ियां सिर्फ रेंगती रह जाती हैं, और कारण है – शहर की सड़कों पर फैलता अतिक्रमण। ये अतिक्रमण सिर्फ जगह घेरने का मामला नहीं, बल्कि यह एक ऐसा ‘करोड़ों का खेल’ है जिसमें नेताओं, अधिकारियों और अन्य रसूखदारों की मिलीभगत सामने आती रही है।
“गरीबी तो सिर्फ बहाना है, असली मकसद है करोड़ों कमाना।”
क्या है अतिक्रमण का असली कारण?
सड़कों, फुटपाथों और सार्वजनिक जगहों पर अनधिकृत कब्जा – खासकर फेरीवालों द्वारा। इन फेरीवालों में से कुछ पंजीकृत होते हैं, जिन्हें कानूनी मान्यता प्राप्त है, परंतु बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो किसी भी प्रकार की अनुमति के बिना अवैध रूप से दुकानें लगाते हैं।
फेरीवालों का नियमन और कानून
भारत सरकार ने स्ट्रीट वेंडर्स (जीविका संरक्षण और सड़क पर व्यापार विनियमन) अधिनियम, 2014 के अंतर्गत फेरीवालों को उनके व्यवसाय के लिए सुरक्षा प्रदान की है। इस कानून के तहत:
- पंजीकरण और पहचान पत्र: फेरीवालों को नगर निगम द्वारा पहचान पत्र और वेंडिंग सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। बिना पहचान पत्र के व्यवसाय करना अवैध माना जाता है।
- टाउन वेंडिंग कमेटी (TVC): नगर निकाय, पुलिस, फेरीवाले, एनजीओ और आम नागरिकों से बनी यह समिति तय करती है कि किसे, कहां और कैसे व्यवसाय करना है।
- वेंडिंग ज़ोन का निर्धारण: शहर को नो-वेंडिंग, रेग्युलेटेड वेंडिंग और फुल वेंडिंग ज़ोन में बांटा जाता है जिससे ट्रैफिक और भीड़ को नियंत्रित किया जा सके।
वसई-विरार में क्यों बिगड़ी स्थिति?
हालांकि स्ट्रीट वेंडिंग अधिनियम 2014 में लागू हुआ, लेकिन वसई-विरार महानगरपालिका, जो 2009 में गठित हुई, आज तक इस अधिनियम को प्रभावी रूप से लागू नहीं कर पाई है। न तो पंजीकरण हुआ, न ही TVC का गठन और न ही कोई वेंडिंग ज़ोन तय किए गए।
नगर निगम का तर्क है कि अधिकतर आरक्षित स्थानों पर पहले ही बिल्डरों ने निर्माण कार्य कर दिया है, जिससे वेंडिंग ज़ोन, स्टेडियम, पार्किंग जैसी ज़रूरी सुविधाओं के लिए जमीन ही नहीं बची।
तो सवाल ये है: कब, कैसे और क्यों हुआ ये सब?
क्या इन 15 वर्षों में किसी नेता, अधिकारी या स्थानीय जनप्रतिनिधि ने आम जनता की समस्याओं को समझने और समाधान निकालने का प्रयास किया? या फिर शहर का विकास सिर्फ बिल्डरों के निजी हितों तक ही सीमित रह गया?
राजनीतिक संरक्षण और अतिक्रमण
वसई-विरार की गलियों में जगह-जगह अतिक्रमण देखने को मिलता है। कई बार ऐसा देखा गया है कि कोई स्थानीय छुटभैया नेता अपने समर्थक को सड़क पर दुकान लगाने की सहमति दे देता है, और वह फेरीवाला बन जाता है। धीरे-धीरे ये स्थान स्थायी अतिक्रमण में बदल जाते हैं।
जनता सवाल कर रही है:
- क्या टैक्स भरने वाली जनता सिर्फ ट्रैफिक (Traffic) में फंसने के लिए है?
- क्या किसी को भी सड़कों पर कब्जा करने का अधिकार मिल गया है?
- क्या वसई-विरार को कभी अतिक्रमण से मुक्ति मिलेगी?
View this post on Instagram
traffic traffic
अतिक्रमण से करोड़ों का व्यवसाय
सप्ताहिक बाजारों, अवैध स्टॉलों और रेहड़ी वालों से होने वाली अनौपचारिक कमाई करोड़ों में पहुंचती है। यह पैसा कहां जाता है, किसे मिलता है, यह कभी सामने नहीं आता। जिम्मेदार लोग सिर्फ एक-दूसरे पर आरोप मढ़कर जनता को भ्रमित करते रहते हैं।
समाधान क्या हो सकता है?
- तत्काल टाउन वेंडिंग कमेटी का गठन करें।
- पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू की जाए और हर फेरीवाले को पहचान पत्र दिया जाए।
- वेंडिंग ज़ोन चिन्हित किए जाएं।
- बिल्डरों द्वारा कब्जाई गई जमीनों की जांच की जाए।
- ट्रैफिक (Traffic) नियंत्रण के लिए नियमित अभियान चलाएं।
- टेक्नोलॉजी का उपयोग कर अतिक्रमण की शिकायत दर्ज करने के लिए पोर्टल या ऐप बनाएं