कोल्हापुर में हरिनाम सप्ताह के दौरान CM फडणवीस ने ‘वोट जिहाद’ को राष्ट्रवादी विचारधारा व भारतीय संस्कृति पर “मौन आक्रमण” बताते हुए सांस्कृतिक अखंडता की रक्षा की अपील की।
मुंबई,7 अगस्त: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कोल्हापुर में आयोजित 178वें अखंड हरिनाम सप्ताह में एक ताज़ातरीन और नाटकीय बयान देते हुए ‘वोट जिहाद’ को केवल राजनीतिक साजिश नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति पर चल रहे एक मौन आक्रमण के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में, कुछ तत्वों ने राष्ट्रवादी और सांस्कृतिक भावनाओं को कमजोर करने हेतु संगठित तरीके से मतदान किया, जिन्हें उन्होंने ‘वोट जिहाद’ कहा। इस वजह से महाराष्ट्र की सांस्कृतिक अखंडता खतरे में है।
उन्होंने कहा, “जब हमें यह साजिश समझ में आई, तब मैंने और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र की संत परंपरा की ओर रुख किया। हमने रामगिरी महाराज और अन्य संतों से मिलकर कहा कि यह केवल राजनीति नहीं है, यह हमारी संस्कृति पर हमला है।”
- भारतीय संस्कृति पर ‘मौन आक्रमण’ का खतरा
फडणवीस ने इस राजनीतिक-सांस्कृतिक खतरे को ऐतिहासिक संदर्भ में रखते हुए कहा कि जैसे पहले आक्रमणकारी मंदिरों और धर्म पर हमले करते थे, वैसे ही आज हमारी आत्मा और चेतना पर चुपचाप हमला हो रहा है। उन्होंने कहा, “सरकारें तो बदलती रहेंगी, लेकिन देश, संस्कृति और राष्ट्रीय पहचान बनी रहनी चाहिए। जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने कहा था,स्वराज्य का लक्ष्य केवल राजनीतिक नहीं बल्कि धर्म और प्रजा की रक्षा के लिए था।”
उनका यह बयान उस चेतावनी की तरह था जो समाज को इस बात के लिए सचेत करता है कि सांस्कृतिक आक्रमण अब बंदूक या तलवार से नहीं बल्कि विचारधारा, वोट बैंक और सामाजिक ध्रुवीकरण से हो रहे हैं।
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- संत शक्ति ने महाराष्ट्र की चेतना जगाई
मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र के संतों और आध्यात्मिक नेताओं की भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि यही संत शक्ति है जिसने न केवल अतीत में महाराष्ट्र को दिशा दी, बल्कि आज भी समाज को जागरूक कर रही है। उन्होंने कहा, “मैं इस संत शक्ति को नमन करता हूं, जिसने महाराष्ट्र की चेतना को जागृत किया। यदि हमें अपने धर्म, संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा करनी है तो जाति और धर्म के बंधनों से ऊपर उठकर एकजुट होना होगा।”
फडणवीस के अनुसार, भारत की आत्मा उसकी संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा में है, और इन मूल्यों की रक्षा के लिए सभी को एक साझा मंच पर आना होगा, चाहे वे किसी भी धर्म या जाति से हों।
देवेंद्र फडणवीस का यह वक्तव्य न केवल एक राजनीतिक प्रतिक्रिया थी, बल्कि एक सामाजिक-सांस्कृतिक आह्वान भी था। उन्होंने सत्ता से परे जाकर देश की स्थायित्व की बात की, यह स्पष्ट करते हुए कि लोकतंत्र में सरकारें आती-जाती रहेंगी, लेकिन भारत की सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्र की आत्मा बनी रहनी चाहिए। उनके इस संदेश को महाराष्ट्र ही नहीं, पूरे देश में राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
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