क्यों Sanjay Raut के पीछे पड़ी है भाजपा? पुरानी दुश्मनी या कुछ और है वजह!
मुंबईः BJP Attacking Sanjay Raut हमारे देश की मुख्य जांच एजेंसियों पर विपक्ष की तरफ़ से कई आरोप लगते हैं और इन आरोपो के आधार पर इन एजेंसियां को सीधे भाजपा से जोड़कर देखा जाता है
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर गरमा गई। इस बार वजह बने शिवसेना के तेज तर्रार नेता Sanjay Raut, इसके बाद से ही कई तरह की बातें सामने आ रही है। कहा यह भी जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी Sanjay Raut को निशाना बनाना चाहती है।
Sanjay Raut और भाजपा की दुश्मनी
BJP Attacking Sanjay Raut अगर हम यह कहें कि महाराष्ट्र की राजनीति से केंद्र कि सियासत में Sanjay Raut को शिवसेना का एक धुरंधर खिलाड़ी माना जाता है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। Sanjay Raut ये भली भांति जानते हैं कि संसद के अंदर केंद्र सरकार पर और सड़क पर उसी सरकार पर हमला करने के लिए अलग अलग तेवर का इस्तेमाल कैसे किया जाता है।
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ज़रा इतिहास के पन्नों को पलटाएं तो हमें पता चलता है कि शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के जीवित रहते हुए ही जब संजय निरुपम शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में चले गए थे तब बाल ठाकरे ने ही Sanjay Raut को पार्टी के मुख पत्र “सामना“ का संपादक भी बनाया था। आज संजय राउत शिवसेना का एक बड़ा चेहरा है तो वहीं संजय निरुपम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है, यह बात ओर है कि पार्टी में उनके कुछ विवाद चल रहे हैं।
बाला साहब ठाकरे के दुनिया से विदा हो जाने के बाद शिवसेना की कमान उद्धव ठाकरे के हाथ में आई, और संजय राउत की उद्धव ठाकरे के साथ ऐसी बनी की राउत मानों उनका सर्वस्व हो यानी कि ठाकरे राऊत की हां के बिना कोई फैसला नहीं ले पाते हैं। उसकी एक वजह यह भी है कि जब उद्धव ठाकरे राजनीति और शिवसेना को ढंग से जानते भी नहीं थे तब भी संजय राउत को शिवसेना की अच्छी जानकारी थी।आपको बता दें कि वर्ष 2019 के अक्टूबर में जो चुनाव हुआ था फिर उन चुनाव के जो नतीजें आए थे उन नतीजों ने शिवसेना और बीजेपी के एक लंबे और पुराने गठबंधन को तोड़कर रख दिया।
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भारतीय जनता पार्टी शिवसेना को पीछे छोड़ते हुए राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी । लेकिन समस्या अभी भी थी पेंच यहां फंसा कि पहले ढाई साल मुख्यमंत्री किसका होगा। गौरतलब है कि पहला दावा और तो बीजेपी का ही था लेकिन यहां एक समस्या खड़ी हुई कि उद्धव ठाकरे इस बार को लेकर राजी नहीं हुए। राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो उस समय पार्टी का निर्णय वर्तमान परिदृश्य को देखे तो वह निर्णय गलत साबित हुआ और इस निर्णय को लेने में एक बड़ा नाम संजय राउत का बताया जाता है।
जानकर बताते है कि राउत ने जहां एक तरफ बीजेपी के लिए पहले उद्धव को सीएम बनने की जिद पर अड़ा रखा था तो वहीं उन्होंने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले अहमद पटेल से बात करके भी यह फिक्स कर लिया था कि शिवसेना, बीजेपी से नाता तोड़ने के लिए तैयार है और हम तीनों पार्टियां मिलकर अब राज्य में महा विकास अघाड़ी सरकार बना सकते हैं। और इन सबसे भाजपा काफ़ी आहत हुई, उसे बड़ा झटका लगा और इसी वजह से माना जा रहा है कि भाजपा के निशाने पर अब संजय राउत है।
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एक वजह है ‘सामना’
शिवसेना के सांसद संजय राउत पार्टी के मुखपत्र मराठी अखबार सामना के कार्यकारी संपादक हैं। संजय राउत का भाषण और लेखन दोनों ही केंद्र सरकार के प्रति आक्रामक होता है। जैसा कि हमने आपको बताया कि 2019 में शिवसेना ने बीजेपी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाकर एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।
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उसके बाद से संजय राउत भाजपा के लिए महाराष्ट्र में कांटा बने हुए हैं। आपको बता दें शिवसेना में संजय राउत ही एक ऐसे नेता है जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी के मुंह से सत्ता छीन कर शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस जैसे 3 अलग विचारधारा वाले दलों की सरकार बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आपको बता दें कि भारत में जितनी भी राजनैतिक पार्टियां हैं उनमें सबसे कड़ी और एक अलग तरह से कूटनीति करने वाली भाजपा ही है, ऐसे में जब भाजपा के हाथ से शिवसेना की सत्ता गई तो संजय राउत भाजपा के सीधे निशाने पर आ गए । महाराष्ट्र की जिस कुर्सी पर बैठने उम्मीदें देवेंद्र फडणवीस ने बांध रखी थी, राउत ने उस उस पर उद्धव ठाकरे को बैठा दिया था।
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उनके इस काम से एक तरफ़ भाजपा आहत थी, वहीं शिवसेना में राउत के बढ़ते कद से शिवसेना के दूसरे नेता भी आहत थे। राउत के बढ़ते राजनीतिक ग्राफ ने उन्हें बीजेपी और शिवसेना के बागी नेताओं का शिकार बना रखा था। वहीं एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना में उद्धव ठाकरे के कमजोर होते ही राउत पर कानूनी कार्रवाई तय मानी जा रही थी।