Dadar Kabutarkhana:हाईकोर्ट के आदेश पर बंद हुए दादर कबूतरखाना को लेकर जैन समुदाय बुधवार को उग्र हो गया। तिरपाल नहीं हटाने पर महिलाओं सहित प्रदर्शनकारियों ने स्थल पर जोरदार आंदोलन किया।
मुंबई,6 अगस्त: दादर स्थित ऐतिहासिक कबूतरखाना वर्षों से जैन समुदायऔर बाकी समुदाय एवं पशु प्रेमी,धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आदेश जारी कर पक्षियों के खुले में दाना डालने से होने वाले प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं को देखते हुए इसे अस्थायी रूप से बंद करने का निर्देश दिया था। इसके पालन में मुंबई महानगरपालिका (BMC) ने मंगलवार को कबूतरखाना को तिरपाल से ढक दिया और प्रवेश पर रोक लगा दी।
हालांकि, उसी शाम मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मंत्री मंगलप्रभात लोढ़ा की बैठक में इस मामले की समीक्षा की गई। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट निर्देश दिए कि कबूतरखाना पूरी तरह बंद न किया जाए, बल्कि नियंत्रित ढंग से दाना डालने की अनुमति दी जाए। साथ ही, उन्होंने तिरपाल हटाने के आदेश भी दिए थे। बावजूद इसके, BMC द्वारा इस आदेश को अमल में नहीं लाया गया, जिससे जैन समुदाय में नाराज़गी फैल गई।
- प्रदर्शनकारियों ने खुद हटाया तिरपाल, महिलाओं की अग्रणी भूमिका
बुधवार सुबह सैकड़ों जैन अनुयायी कबूतरखाना स्थल पर इकट्ठा हुए। प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन के खिलाफ नारेबाज़ी शुरू कर दी। कुछ युवा प्रदर्शनकारी छत पर चढ़ गए और बांस को तोड़ते हुए तिरपाल हटाने लगे। खास बात यह रही कि महिलाओं ने अपने साथ लाए चाकू और कैंचियों से तिरपाल को बांधने वाली रस्सियों को काट दिया, और उसे पूरी तरह हटा दिया। यह पूरी कार्रवाई बेहद संगठित ढंग से की गई।
प्रदर्शन के दौरान कुछ समय के लिए स्थानीय ट्रैफिक अवरुद्ध हो गया, जिससे दादर क्षेत्र में अफरा-तफरी मच गई। मौके पर भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे। तनावपूर्ण माहौल के बावजूद प्रदर्शन शांतिपूर्ण रूप से जारी रहा, लेकिन जैन समुदाय के आक्रोश ने प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया।
- राजनीतिक बयानबाज़ी तेज, MNS ने जताई नाराज़गी
इस घटना पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के नेता अविनाश अभ्यंकर ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि जब मुख्यमंत्री ने हस्तक्षेप कर स्थिति को स्पष्ट कर दिया था, तो जैन समुदाय ने इतना आक्रोश क्यों जताया? क्या उन्हें मुख्यमंत्री पर भरोसा नहीं है? साथ ही उन्होंने मंगलप्रभात लोढ़ा की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें इस स्थिति पर स्पष्ट बयान देना चाहिए। अभ्यंकर ने यह भी दोहराया कि MNS कबूतरखानों के खिलाफ पहले से ही सख्त रुख रखती है, क्योंकि कबूतरों की बीट और पंखों से गंभीर श्वसन रोग होते हैं।
- आगे क्या?
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि हाईकोर्ट की सुनवाई में क्या फैसला आता है, और क्या BMC प्रशासन मुख्यमंत्री के निर्देशों का पालन करेगा या न्यायालय की सख्ती बनी रहेगी। इस पूरे घटनाक्रम ने धर्म और विज्ञान के बीच संतुलन को लेकर नई बहस को जन्म दे दिया है।
इस विवाद से यह स्पष्ट है कि धार्मिक भावनाएं और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच सामंजस्य बनाना प्रशासन के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है।
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