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Mumbai Local Train Blast News: 2006 बम धमाके में घायल प्रभाकर मिश्रा फिर निराश, हाई कोर्ट ने आरोपियों को बरी किया

प्रभाकर मिश्रा 2006 ट्रेन धमाके के बाद न्याय की उम्मीद करते हुए
2006 लोकल बम धमाके में घायल पीड़ित की प्रतिक्रिया

Mumbai Local Train Blast News: 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों के 19 साल बाद जब हाई कोर्ट ने आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया, तब हादसे में घायल हुए प्रभाकर मिश्रा की उम्मीदें फिर टूट गईं। अब वे सुप्रीम कोर्ट से अंतिम उम्मीद लगाए बैठे हैं।

मुंबई, 21 जुलाई : मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों को 19 साल बीत चुके हैं, लेकिन पीड़ितों का इंसाफ पाने का संघर्ष अब भी जारी है। हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया, जिससे एक बार फिर पीड़ितों की उम्मीदों को गहरा झटका लगा है।

सबसे भावुक प्रतिक्रिया उन पीड़ितों में से एक, प्रभाकर मिश्रा की रही, जो पेशे से गणित शिक्षक हैं और 2006 में माटुंगा से दहिसर की यात्रा के दौरान धमाके में गंभीर रूप से घायल हुए थे।

🧑‍🏫 “19 साल की तकलीफ़ और आज फिर खाली हाथ”

मिश्रा ने बताया:

“धमाके में मैंने एक कान की सुनने की शक्ति खो दी, अब तक दवाइयां और मानसिक पीड़ा झेल रहा हूं। कोर्ट ने एक झटके में कह दिया — सबूत नहीं हैं। क्या इतने सारे मरने और घायल होने वालों का कोई दोषी नहीं?”

उनका दर्द गुस्से में तब बदल गया जब उन्होंने कहा कि:

“कहीं यह लीगल सिस्टम में पैसे का खेल तो नहीं? कोई दोषी नहीं मिला — ये सोच कर मेरी आत्मा कांप जाती है।”

⚖️ अब सुप्रीम कोर्ट से न्याय की उम्मीद

प्रभाकर मिश्रा अब इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने मांग की कि न केवल फैसले को चुनौती दी जाए, बल्कि उन लोगों की जांच भी हो, जिन्होंने झूठे साक्ष्यों, लीगल सेटअप या प्रभाव का इस्तेमाल कर केस को कमजोर किया।

🔍 मिश्रा का सवाल: अगर कोई दोषी नहीं, तो इतने लोग क्यों मरे?

  • 2006 में हुए सात सिलसिलेवार बम धमाकों में 189 लोग मारे गए और 800 से ज्यादा घायल हुए थे।

  • आज, 19 साल बाद जब कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया, तो प्रभाकर मिश्रा जैसे सैकड़ों पीड़ितों को दोबारा मानसिक आघात झेलना पड़ा है।

🧵 समाज और सिस्टम पर उठते सवाल

  • क्या हमारे जांच तंत्र की कमजोरी है?
  • क्या गवाहों की सुरक्षा और पेशगी में चूक हुई?

  • क्या दोषियों को राजनीतिक या लीगल संरक्षण मिला?

इन सभी सवालों को लेकर प्रभाकर मिश्रा सुप्रीम कोर्ट से अंतिम उम्मीद लगाए बैठे हैं।

प्रभाकर मिश्रा जैसे पीड़ितों की आंखों में अब भी उम्मीद है, पर भरोसा अब कमजोर पड़ता जा रहा है। 2006 के लोकल ट्रेन धमाकों की जांच और न्याय प्रणाली पर फिर से सवाल उठने लगे हैं।

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