मुंबई/नवी मुंबई, 10 जून 2025 — हार्बर लाइन (नवी मुंबई) की नेरूल स्टेशन के पास सुबह लगभग 09:00 बजे, हार्बर लाइन की नवी मुंबई सेक्शन पर नेरूल स्टेशन के पास सिग्नल प्रणाली में तकनीकी खराबी के कारण स्थानीय ट्रेन (Mumbai Local Train) सेवाएँ लगभग एक घंटे तक बाधित रहीं। इसके चलते यात्रियों को गंभीर असुविधा का सामना करना पड़ा और कुछ लोग रेलवे ट्रैक पर चलने को मजबूर हो गए, जिससे स्टेशन परिसर में भारी भीड़ जमा हो गई ।
मध्य रेलवे के प्रवक्ता के अनुसार तकनीकी विफलता सुबह 9 बजकर 45 मिनट के आसपास ठीक की गई, जिसके बाद सेवाएँ 10:00 बजे तक पूरी तरह बहाल हुईं। हालांकि ट्रेन चलना शुरू हो गया, ट्रेनों के बीच देरी का असर जुर्मिलेगा: प्लेटफॉर्मों पर भीड़ और ट्रेनों का लेट चलना जारी रहा।
🔍 कल का बड़ा रेल हादसा: भीड़ वो भीषण त्रासदी
इस अप्रिय तकनीकी गड़बड़ी से सिर्फ यात्रियों को क्रिकेट की घंटों की देरी सहनी पड़ी—लेकिन इससे पहले 9 जून यानी कल ठाणे–मुम्ब्रा मैन लाइन पर एक भयानक हादसा हुआ था, जिसमें दो तेज़ लोकल ट्रेनें आमने-सामने गुजरते समय भीड़ की वजह से कम से कम आठ यात्रियों के गिरने की घटना दर्ज की गई। इसमें चार लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हुए। यह दुर्घटना मुम्ब्रा स्टेशन के प्लेटफॉर्म 3–4 के बीच हुई, जहां ट्रेन की गति और भीड़ का खतरनाक मेल बने रहने का कारण माना जा रहा है।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, रेल मंत्री और डिप्टी CMs ने इस घटना पर गहरा दुख प्रकट किया और मृतकों के परिवारों के लिए 5‑5 लाख रुपये मुआवजे का ऐलान किया । विपक्ष ने भी सवाल उठाए—रेल मंत्री की बर्खास्तगी की माँग हुई, और ऑटोमैटिक दरवाज़ों के बिना लोकल ट्रेनों को “पत्थर चढ़ी वस्तुओं” में बदलने का आरोप लगाया गया ।
⚠️ दोनों घटनाओं से उठते सवाल — क्या बस “टेक्निकल फॉल्ट” की सफ़ाई से समाधान होगा?
घटना | समय/स्थान | समस्या | परिणाम |
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1 | 10 जून शाम, नेरूल | सिग्नल सिस्टम फेल | यात्रियों में अफरा‑तफरी, ट्रैक पर भीड़ |
2 | 9 जून सुबह, मुम्ब्रा स्टेशन | भीड़ व तेज़ गति में ट्रेनों का आमना‑सामना | चार यात्रियों की मौत, कई घायल |
इन घटनाओं से एक बड़ी व्यवस्था की विफलता स्पष्ट होती है:
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तकनीकी बुनियादी ढांचे की खामी
– न सिर्फ सिग्नल सिस्टम में तकनीकी कमज़ोरी बनी, बल्कि भीड़ प्रबंधन की ठोस रणनीति भी नदारद रही। -
यात्रियों की सुरक्षा कहाँ?
– दोनों ही घटनाओं में यात्रियों की जान को सीधा ख़तरा उत्पन्न हुआ—पहली घटना में ट्रैक पर खुदखुशी की बलि चढ़ाई गई; दूसरी में उनकी जान बचाने का इंतज़ाम न रहा। -
जल्दी की जाने वाली “समाधान नीति”—समस्या की अड़ियल जड़?
– ऑटोमैटिक दरवाज़ों की घोषणा (जनवरी 2026 तक लागू) तो हुई है लेकिन क्या ये इंतज़ामी हल समय पर होगा? और क्या ये एकमात्र समाधान है?
✋ सुझाव व अगली राह
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तुरन्त कदम: प्लेटफ़ॉर्मों पर तैनाती बढ़ाई जाए, स्पॉट तकनीकी टीमें रोज़ तैनात रहें, विशेषकर सफ़लता की पुष्टि नहीं होने तक ट्रेनों को बंद रखा जाए।
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भीड़ प्रबंधन के लिए योजना: मुम्ब्रा–ठाणे जैसे जाम–झाम इलाकों में ‘ट्रैफिक कंट्रोल’ नियोजित तरीके से हो, और सुरक्षा गार्ड भी तैनात हों।
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ट्रेसिंग सिस्टम (बीच‑बीच में जांच): सिग्नल सिस्टम, ट्रैकेबल ट्रेनों और प्लेटफ़ॉर्म कैमरों की नियमित जाँच आवश्यक है।
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जनजागरूकता अभियान: यात्रियों को भीड़ से दूर रहने, ट्रेनों के बीच फंसने और ट्रैक के पास चलने पाने के खतरों को समझाने के लिए सजग मीडिया मुहिम शुरू की जाए।
नेरूल तकनीकी खराबी ने दिखाया कि बिना यथार्थ सुरक्षा और सुदृढ़ बुनियादी ढांचा, यात्रियों के लिए कोई भी ट्रेन सफर सुरक्षित नहीं रही। वहीं मुम्ब्रा हादसे ने याद दिलाया कि भीड़, तेज़ी और व्यवस्थात्मक लापरवाही एक भयानक त्रासदी का ज़िंदा सूत्र है। सरकार, रेलवे और जनता—तीनों को मिलकर इस बहुस्तरीय समस्या को तकनीकी, मानवीय और नीति स्तर पर सिखाने व सुधारने की ज़रूरत है।
यात्रियों, आपकी सुरक्षा सर्वोपरि है — भीड़ से दूरी बनाएं, प्लेटफ़ॉर्म किनारे से दूर रहें, और किसी भी तकनीकी या भीड़‑असामान्य स्थिति को तुरंत अधिकारियों के ध्यान में लाएं।