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NH-48 पर जानलेवा ट्रैफिक ज़ाम: जनता कर रही चीख-चीख कर सवाल, सरकार अब भी मौन!

NH-48 पर वसई के पास जाम में फंसी कई गाड़ियाँ, लोग परेशान और रास्ते में फंसे दिख रहे हैं

वसई निवासी विशाल जोशी ने NH-48 पर दो घंटे के जाम में फंसे रहकर गुस्से में कहा—”अगर एम्बुलेंस होती, मरीज़ रास्ते में ही दम तोड़ देता।”

मुंबई, 31 जुलाई: मेट्रो सिटी समाचार द्वारा NH-48 की बदहाल स्थिति पर रिपोर्ट के बाद भले ही NHAI ने आंकड़ों की झड़ी लगाकर सफाई पेश कर दी हो, लेकिन जमीनी सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। रोजाना हजारों नागरिकों को जिस पीड़ा से गुजरना पड़ता है, वह आंकड़ों में नहीं, बल्कि उनके जीवन के संघर्ष में दिखती है। वसई के निवासी विशाल जोशी ने सोशल मीडिया के ज़रिए आज NH 48 की स्थिति दिखाई और वीडियो से कहा “मैं दो घंटे से जाम में फंसा हूं। सोचिए अगर मेरे साथ कोई मरीज़ होता, या एम्बुलेंस होती, तो क्या वो जिंदा बचता?” उन्होंने बताया कि उन्होंने कई बार 112 इमरजेंसी नंबर पर कॉल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

वसई के रहने वाले यात्री विशाल ने मेट्रो सिटी समाचार से हुई बातचीत में बताया कि आज उन्हें पुणे जाना था जिसके लिए उन्होंने सुबह १० बजे यात्रा की शुरुआत थी और फाउंटेन होटल पहुँचने के लिए उन्हें तीन घंटे से जयादा संघर्ष करना पड़ा.

NHAI की सफाई पढ़ें: NH-48: मेट्रो सिटी समाचार की रिपोर्ट पर NHAI की सफाई : “108 KM सफेद टॉपिंग पूरी, बाकी काम प्रगति पर”

जोशी का यह दर्द अकेला नहीं है, बल्कि हजारों लोगों की रोज़मर्रा की हकीकत बन चुका है। इस मार्ग पर निर्माण कार्य, अधूरी सड़कें, गड्ढे, अवैध कट और लेन अनुशासन की घोर अनदेखी ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है। कामकाजी लोग अपने कार्यालय समय पर नहीं पहुंच पाते, छात्र स्कूल लेट होते हैं, और मरीज अस्पताल नहीं पहुंच पाते। ऐसे में “विकास” के नाम पर जनता को रोज़ मरने जैसा अहसास हो रहा है। जोशी ने तीखे शब्दों में कहा, “सरकार में बैठे लोगों को एक दिन आम आदमी की तरह इस रास्ते से गुज़रना चाहिए, तब उन्हें पता चलेगा कि सड़कों पर क्या नर्क बना हुआ है।”

ठेकेदार के खोखले दावे: बनाना था बेहतरीन हाईवे, बना दिया नर्क 

सरकार और NHAI की कागज़ी सफाई जनता की हकीकत से कोसों दूर है। 108 किलोमीटर सफेद टॉपिंग पूरी होने की बात हो रही है, लेकिन लोगों की ज़िंदगी आज भी जाम में उलझी हुई है। नालियों की खुदाई, नए साइन बोर्ड और चेतावनी संकेतकों की बातों से जनता को कोई राहत नहीं मिलती, जब तक वह अपने गंतव्य तक सुरक्षित और समय पर नहीं पहुंच पाती। सोशल मीडिया पर लोग अब खुलकर अपना गुस्सा और नाराज़गी जाहिर कर रहे हैं, लेकिन सरकार अभी भी मौन है। क्या यही है “विकसित भारत” की तस्वीर? जनता सवाल कर रही है—जवाब कौन देगा?

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