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राखी के धागे ट्रैफिक में उलझे: घोड़बंदर रोड की मरम्मत ने रक्षाबंधन की भावनाओं को किया जाम में कैद

रक्षाबंधन पर ट्रैफिक जाम: घोड़बंदर रोड मरम्मत का असर
रक्षाबंधन पर ट्रैफिक जाम: घोड़बंदर रोड मरम्मत का असर

घोड़बंदर रोड की मरम्मत ने रक्षाबंधन की भावनाओं को ट्रैफिक में जकड़ लिया। सुबह 10 से दोपहर 1:30 बजे तक का राखी मुहूर्त निकला, लेकिन हजारों बहनें अब भी अपने भाइयों तक पहुँचने की कोशिश में हैं।

मुंबई, 9 अगस्त: मुंबई-अहमदाबाद राज्य मार्ग पर बिते दिनों से ट्रैफिक जाम की समस्या बहुत ही ज्यादा बढ़ गयी है जिससे लोगो को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा और ऐसे मे 9 अगस्त को रक्षाबंधन के मौके पर जब बहनें अपने भाइयों से मिलने के लिए निकल रही थीं, तब ठाणे से घोड़बंदर रोड की ओर जाने वाले रास्ते पर शुरू हुए मरम्मत कार्य ने यात्रा में बड़ी परेशानी खड़ी कर दी। राखी बांधने का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक था, इसलिए कई बहनें सुबह 7-8 बजे के बीच घर से निकलीं। उनके पास पूजा की थाली, मिठाई और उपहार थे, लेकिन घोड़बंदर रोड पर लगे “सड़क मरम्मत के कारण मार्ग बंद है” के बोर्ड ने उन्हें लंबा ट्रैफिक झेलने को मजबूर कर दिया, जिससे तय समय पर पहुँचना मुश्किल हो गया।

  • इंच-इंच बढ़ते वाहनों में फंसी राखियों की आस

गायमुख घाट के पास सड़क के गड्ढों की मरम्मत के लिए 8 अगस्त से 11 अगस्त तक घोड़बंदर रोड को पूरी तरह बंद कर दिया गया। इसका ट्रैफिक चिंचोटी-भिवंडी रूट की ओर डायवर्ट किया गया, लेकिन उस संकीर्ण मार्ग ने जल्द ही दम तोड़ दिया। गाड़ियों की कतारें किलोमीटरों तक खिंच गईं। महिलाएं, बुजुर्ग, छोटे बच्चे सभी इस झुलसाती गर्मी में घंटों फंसे रहे। कुछ बहनें, जो सुबह 8 बजे निकली थीं, शाम 4 बजे भी रास्ते में ही है।

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  • हर मोड़ पर मायूसी, हर दिल में एक दुआ

जैसे ही मुख्य रास्तों पर जाम बढ़ा, लोग वसई-विरार की आंतरिक गलियों में मुड़े, लेकिन वहाँ भी हालात अलग नहीं थे। नायगांव-बफाणे और टिवरी फाटा-भोइडापाड़ा जैसी गलियाँ, जो आमतौर पर शांत रहती थीं, अब असहनीय भीड़ से घिरी थीं। इन सड़कों की क्षमता इतनी नहीं थी कि हजारों वाहनों को संभाल सके।

  • प्रशासन से नाराज़गी, राखी से बंधी उम्मीदें

लोगों का गुस्सा सड़क पर भी दिखा और सोशल मीडिया पर भी। सवाल सिर्फ इतना था – क्या ये मरम्मत कार्य त्योहार के बाद नहीं हो सकते थे? ऐसे समय पर रास्ता बंद करना, जब पूरा शहर अपनों से मिलने के लिए बाहर होता है, ये सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि संवेदनहीनता है।

राखी का दिन साल में एक बार आता है, जब भाई-बहन का रिश्ता मुस्कुराता है। लेकिन इस बार, कई राखियाँ धागे की तरह कमजोर नहीं, भावनाओं की तरह भारी हो गईं। कुछ बहनों ने रास्ते में गाड़ी रोक कर पेड़ों के नीचे बैठ कर पूजा की, तो कुछ ने वीडियो कॉल पर राखी बांधने की कोशिश की।

आज रक्षाबंधन सिर्फ एक त्योहार नहीं था, यह एक संघर्ष बन गया रिश्तों को समय पर संजोने का, भावनाओं को ट्रैफिक से निकालने का। बहनों की आँखों में आज सिर्फ साज-सज्जा की चमक नहीं थी, बल्कि समय पर पहुँचने की बेचैनी और उम्मीद थी।

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