महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा मोड़, 20 साल बाद उद्धव और राज साथ आए। मुंबई से नासिक तक नगर निकाय चुनावों में साझा रणनीति। मराठी अस्मिता को केंद्र में रखकर जनता के दिलों को जीतने की कोशिश।
मुंबई, 16 अगस्त: महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ देखने को मिला है। दो पुराने राजनीतिक दिग्गज राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे लगभग 20 साल बाद एक मंच पर मराठी अस्मिता के नाम पर साथ आ गए हैं। यूबीटी नेता संजय राउत ने हाल ही में एक चुनावी रैली में ऐलान किया कि अब समय आ गया है कि मराठी लोगों के आत्मसम्मान की लड़ाई फिर से लड़ी जाए। उन्होंने कहा कि इस बार मुंबई, पुणे, कल्याण-डोंबिवली, नासिक और ठाणे जैसी बड़ी महानगरपालिकाओं में गठबंधन मिलकर चुनाव लड़ेगा।
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संजय राउत का दावा, “हमारा गठबंधन मजबूत है”
संजय राउत ने रैली में कहा, “हम बातचीत कर रहे हैं, तालमेल बना रहे हैं। यह सिर्फ राजनीतिक गठबंधन नहीं, यह मराठी आत्मा की पुकार है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि चुनाव में यह गठबंधन बीएमसी समेत कई नगर निकायों में भाजपा को कड़ी टक्कर देगा। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि “कोई भी अघोरी शक्ति आ जाए, मराठी वज्र को तोड़ नहीं सकती।” मुंबई में हाल ही में आयोजित एक रैली में राउत ने कहा कि अब जब मराठी अस्मिता की बात है, तो हम एक हैं। कांग्रेस ने इस मिलन को “पारिवारिक मामला” कहकर नकारा नहीं, बल्कि समर्थन में खड़ा होने के संकेत दिए। यह भी स्पष्ट हुआ कि कांग्रेस, यूबीटी और मनसे के बीच लोकल बॉडी चुनाव को लेकर एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर चर्चा चल रही है।
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बीजेपी की प्रतिक्रिया और बढ़ती सियासी गरमी
बीजेपी इस पूरे घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रही है। पार्टी नेता प्रताप दारेकर ने तंज कसते हुए कहा कि “शैतान को डर है कि राज ठाकरे बिना गठबंधन के उनकी पार्टी को खतरे में डाल देंगे।” यह टिप्पणी सीधी यूबीटी पर निशाना थी। बीजेपी का दावा है कि विपक्षी दल सिर्फ सत्ता पाने के लिए साथ आ रहे हैं, उनका जनता से कोई वास्ता नहीं। हालांकि यह भी सच है कि पिछले बीएमसी चुनावों में बीजेपी ने खुद को एक मजबूत ताकत के तौर पर पेश किया था, लेकिन इस बार गठबंधन की ताकत को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा। खासकर तब जब जनता स्थानीय मुद्दों से त्रस्त है पानी, सड़क, साफ-सफाई और अवैध निर्माण जैसी समस्याएं हर नगर निगम क्षेत्र में सिर चढ़कर बोल रही हैं।
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जनता की उम्मीदें और चुनावी माहौल
20 साल बाद दो बड़े नेताओं का एक साथ आना, वह भी मराठी अस्मिता जैसे भावनात्मक मुद्दे पर, आम नागरिकों के लिए उम्मीद की किरण है। मुंबई, नासिक, ठाणे, कल्याण जैसे इलाकों में लोग इस गठबंधन से कुछ ठोस बदलाव की अपेक्षा कर रहे हैं। लंबे समय से स्थानीय राजनीति में चल रहे वादों और अधूरे कामों से जनता ऊब चुकी है। राज ठाकरे की मराठी भाषी लोगों के लिए स्पष्ट आवाज और उद्धव ठाकरे की जमीनी पकड़, दोनों मिलकर एक ऐसा समीकरण बना सकते हैं जो निकाय चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सके। यह गठबंधन सिर्फ राजनीति नहीं, एक भावनात्मक आंदोलन के रूप में उभरता दिख रहा है।
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