Mumbai News: उल्हासनगर में डॉक्टरों की लापरवाही से एक जिंदा बुजुर्ग को मृत घोषित कर दिया गया। डेथ सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया गया था, लेकिन अंतिम संस्कार से पहले ही उनकी सांसें लौट आईं। अब डॉक्टरों ने गलती मानी है, लेकिन इस घटना ने चिकित्सा क्षेत्र की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है।
मुंबई/ठाणे – मुंबई और ठाणे में इलाज के दौरान डॉक्टरों की लापरवाही की कई घटनाएं पहले भी सामने आ चुकी हैं, जैसे ऑपरेशन के दौरान पेट में तौलिया या कैंची छोड़ देना। लेकिन अब ठाणे जिले के उल्हासनगर से एक और हैरान करने वाली घटना सामने आई है, जहां डॉक्टरों ने एक जीवित मरीज को मृत घोषित कर डेथ सर्टिफिकेट तक जारी कर दिया।
65 वर्षीय अभिमान तायडे नामक बुजुर्ग को कुछ दिनों से तबीयत खराब थी। जब उनकी हालत बिगड़ी और वे अचानक बेहोश हो गए, तो उनका बेटा उन्हें रिक्शा से उल्हासनगर के एक निजी अस्पताल ले गया। वहां डॉक्टरों ने बाहर ही जांच की और मृत घोषित कर दिया। परिजनों को शोक संतप्त मन से घर लौटना पड़ा।
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अस्पताल ने मौत की पुष्टि करते हुए लिखित डेथ सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया। घर पहुंचकर परिवार ने अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू की। लेकिन तभी एक सदस्य ने गौर किया कि अभिमान तायडे के सीने में हलकी-सी धड़कन है। तत्काल उन्हें उल्हासनगर के एक अन्य निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने प्राथमिक जांच के बाद बताया कि वे जीवित हैं। इलाज शुरू होते ही तायडे को होश आ गया, जिससे परिजन राहत में आ गए, लेकिन पूरा इलाका स्तब्ध रह गया।
अपनी गलती स्वीकार की
बाद में मृत घोषित करने वाले डॉक्टरों ने अपनी गलती स्वीकार की। उनका कहना था कि मरीज की नब्ज नहीं मिली और शोरगुल के कारण धड़कन का अंदाजा नहीं लग सका। उन्होंने अपनी इस लापरवाही पर खेद भी जताया है।
हालांकि इस घटना ने मेडिकल सिस्टम की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ज़िंदा व्यक्ति को मृत बताना, और फिर उसका डेथ सर्टिफिकेट तक जारी कर देना न केवल गैर-जिम्मेदारी है, बल्कि यह मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ जैसा है। मेडिकल क्षेत्र में ऐसी घटनाओं को लेकर अब जांच और जवाबदेही की मांग तेज हो गई है।